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________________ १०३ 5 वावीसपरीसह खीणगत्त तहिं णिच्चल थिय तणु परिहरेवि णिम्मलु आऊरिवि सुक्क ज्झाणु गयमोक्खहो सासयसुहहो तिण्णि गय लहुय भाय सव्वत्थसिद्धि कण्णाइ एम उप्पत्ति भणिय कहि सुरवर हि माणव वराय कहि एक्क वहुय वहु हवेइ सत्तुंजयगिरिवरसिहरु पत्त । उवसग्ग घोरु अरिकिउ सहेवि । उप्पाए वि केवलु विमलु णाणु। ईसीसि कसाउ वहेवि विण्णि । अवरहे नवे अवस लहंति सिद्धि । ण वि रविजमपवणिदेहि जणिय । अघडिय संबंधालाव आय । तं वोल्लिजइ जं संभवेइ । 10 घत्ता- अण्णारिसु भारहु वित्तु जणे अण्णारिसु वासें भणिउ । गट्टरपवाहगामिडाजणेण अलिउ वि तं सव्वउ गणिउ ।।५।। (6) महाभारत कथा समीक्षा भारहु विरए वि वासें संकिउं होइ पसिद्ध ण पाइउ मइ किउ । इय चितंतु कहि वि छणि गंगहे व्हाणकज्जे गउ विमलतरंगहे । वालुयपुंज तीरे विरएविणु तहिं तं भायणु गूढ छुहे विणु । अहिणाणत्थु फुल्लु सिरि देविणु ण्हाइ जाम सइ जले पइसेविणु । तो लोएण वि पुंज करेविणु फुल्लाहिं पुज्जिय लिग भणेविणु। 5 बासु जाम किर तीक णिरिक्खइ वालुयपुंज णिरंतर पेक्खइ । को लोएँ किय को किर मइँ किउ एउ वि ण वियाणइ मणे विभिउ । देववियण्णिय लोयसमूहें ते जइ भंजमि भायण लोहें । तो अण्णाणिउ जण मणि मण्णइ वासु करेवि देउ अवगण्णइ । तो वरि भायणु जाउ अम्हारउ अयसपुंज भंजणे गरुयारउ। 10 (5) 1.b रज्ज, 2.a मेस्तु, b सम for कय, 3.b सित्तंजय, 4.a तहि, 7.b अवरहिं, 8.4 उप्पण्ण, bण उ. b पणिदेण, 9.b कहिं माणवि, 10.a कहि, b वहुय, b repeats वहु, 10.a वोल्लिज्जइ, Il.b अणारिसु, b भणिउ, 12.a गहुरि०, b गणिउं । (6) l.b मई, 2.b एउ for इय, b कहि मि, b तरेंगहे, 3.a गुढु, 5.a पुंज, a फुल्लाह, 7.a मइ, b वियाणइं, 9.b अण्णाणिउं, b मण्णइं, b देव अवगण्णइं, 10.a वर, b अफारउ, a अजसु पुंजु, a गरुआरउ, il.a रंगा सोहह, 12.a हवई जई, b इ for इय Cf. अमितगति धर्मपरीक्षा, 15.64-66. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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