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________________ वरकुंडिय मंडियरत्तपाणि सिरि कय मउलिय करु जय पयासु वोल महु पेसणु ताय देहि तें वयणें गंगाणइथलम्मि धत्ता सा धीवरधीय कय परित्त कामाउरेण । तह अक्खयजोणि सउ गंधिणी पारासरेण ॥ १५ ॥ सुक्क मुक्कु गंगा है। चंदवइ णाम पुप्फवइ आय ९७ (16) उद्दालक और चन्द्रमतो कथा पारासरवयणें जेम वासु गउ जणणिवय पेसण गणंतु णि सुणेवि पभणमि दियवरहो अण्णु जायउ रविणा सा चेय कण्णु crafण जइ कुंति कण्ण रवि करइ कण जइ भणहु एव उद्दालु णाम अवरु वि मुणिदु सुइणेतर जारी रहवसेण वाईसरि जोइ पवित्तंवाणि । पारासरपय पणवेवि पासु । मुण पणइ एत्यु जि तउ करेहि । तवे संठिउ सो पावणजलम्भि | वहे कहिउ ति चंदममई काणणे जहि पंचाणणहो झुणी घस्ता - तें कमलु लएवि सुघिउ ता तहि तक्खणेण । हुउ गब्भु मुवि जणणिए थण किण्हंतणेण ॥१६॥ (17) Jain Education International विठओ तिह हओ तवसि वासु । अच्छामि सुतित्थजत्तउ कुणंतु । कुंति कण्णेहि कण्णेण कण्णु । पंहि विदिष्णु । तो मइ जाए महु माय किण्ण कह रहि असुइ माणुसिउ देव । नियतवपावकंपिय सुरिंदु | पज्झरिउ णवरति तावसेण । कमलम्मि ताम सुय रहुवईहे । गंगाजलम्मि विमलम्मि पहाय । घल्लाविया मण्णेवि दुट्ठमई । तहि दिट्ठ ताए तिणविंदु मुणी । 10 For Private & Personal Use Only 5 ( 16 ) 2.b गउं, 3. b णिसुणहुं, b कुंतहि कण्णहि, 4.b चेव कण्ण, a पंडहि, b दिणा for दिष्णु, 5.b जंइ, b भो मई जायहं महुं, 6.b करई वर्णं जई भणहु एउं कह रमइ असुइं माणुसिय देहु, 7.b उंद्दालु णामि, 8.b सुईणतरि b रइव सेण, 9.b मुक्कु गाणईहिं कमलम्मे ताम सुअ रहुवईहि, 10.b चंदवs, b पुप्फवई, 11 b तं for तें, b सुचिरं, a तक्खेणणा, b तक्खणिणा किन्हत्तणेण, a किण्हतणेणा, 12. b हुउं, b जणणिहि थण | 10 www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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