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पंचमसमिदि सब्भाव पयासण दित्तगुत्तिरयणत्तयभासिय एरिसु धम्म देउ आगमु गुरु कि वहुएण सारु अक्खिज्जइ
अट्ठकम्मवणगहणहुयासण । भूयहिं जेहिं अहिंसा भासिय। जो मण्णइ तहो गुणसंगम गुरु । जिणगुणसुमरणे कलिमलु खिज्जइ ।
घत्ता- हरिसेण ते आयारु जसु रू उ मुणिहिं झाइज्जइ ।
तहो णयणरामखंदियहो जिणणाहहो पणविज्जइ ॥२०॥
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इय धम्मपरिक्खाए चउवग्गाहिट्ठियाए चित्ताए । बुहहरिसेणकहाए पंचमसंधि परिच्छेओ समत्तो ।।छ।।५।। श्लोक ।। १९४॥
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(20) I.b & for जो, 3.a वसुधर, b ० महावय०, 4.a ०घण० for oधण,
a ०हुआसण, b हुवासण, 5.b ०रयणरुयभ सिय, a भुयहं जेहि, 6.b मण्णई, 7.a समरणे, 8.b तेय for ते, 10.a चउग्गाहि, Il.b संधी. a परि for परिच्छोओ, a संमत्तो, b omits श्लोक ॥१९४॥
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