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________________ जो जो देउ वि पहरणु धारइ इतिलोउ गुरुकमणिवद्धउ जे पुण छुहतिसाए परिवज्जिय गय घणकम्मपडल सासयसुह अह त्ति गुणगणु अक्खेवउ धम्मे धम्मसारु जह जइणा जासु अहिंसासास सासणु भावि मुणिवंदहि वंदहि जासु असोउ विसालउ सालउ पहवइ सयलु भासा भासा सिंहासणु जयसुहरु सुहयरु दुहिसरु जगु वहिरइ वहिरइ सो देवाण वि देवो देवो घरता - जिह चउहिं सुवण्णु परिक्खियइ ताव छेयकसताडणहि । देवा इय दयस्य तवचरिय गुणह मुणेवउ सज्जहि ॥ १८ ॥ (19) ७२ तह जिणेण जो भासिउ आयमु जे अरि सुहि तणकणयसमाणा खमगुणेण जे जिहि वसुंधर सो सो भय पर संहारइ । छुहतिसाइ दोसहि उट्ठद्धउ । ते जिण सुरणरविसहरपुज्जिय । सिद्ध पसिद्ध बुद्ध गुणगणहि । देवें देउ णरें गरु परिक्खेवउ । आय आयमेण वहुमइणा । घत्ता - तें भासिउ दहविउहु धम्मुवरु जह सुपरिक्खेवि किज्जइ । चउगइ संसारहो तणउ दुहु तो अइरेण वि छिज्जइ ॥ १९ ॥ (20) सासह संपवणु पावणु । road देवा सारहि सारहि । सुर मुयंति संफुल्लई फुल्लइ । परिखिवंति णिच्चामर चामर । भामंडल जियभावइ भावइ । छत्तत्तउ सतिभासिउ भासिउ । अहिदेउ अरिहंतं तं । Jain Education International सो सग्गापवग्गु सुह आयभु । ते मुणिविर गुरु भणिय समाणा । पंचमहव्वयभार धुरंधर । 10 ( 18 ) 1.6 0 दोसायर राइ रुहि पडिय चउंमुहसर, 2 b त्तिहुयणचिताई, b अफसु, 3. b धारओ, b पसुसंहारओ, 48 तिलोय, b छुहतिसाहं, 5. b जो for जं, 6.5 ०फडल, b गुणगणणिह, 7.b देवे, b नरे नरु, 9. b सुवणु a छज्ज०, 10.a गुणहि, b मुणेवा for मुणेबउ । 5 ( 19 ) 1a • सुह, 2. भावहि जइ मुणिवंदहि, b वंदहि थुव्वइ, b सारहिं सारहि, 3. b सं फुल्लई फुल्लई, 5. a ज for जय a in margin explains वहियरु रत्नत्रयमार्ग, 7.b हरिहरहिं न चरियई परियई, 8. b अहिवंदे, 9.a सुपरिक्ख वि, 10 b तणउं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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