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तिल्लु आसि जोवइ समल सो म जेण दुज्जउ जियउ तं वंदइ जो भवभमण चयं पावेविणु सुरणरयपयं इय मित्तणिमित्तं देवगुणु उ खगवणंदणु उववण हो
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तावसि परयारे ससि समलु । सो देउ सुरासुर पुज्जियउ । सो रु वंदारयवंदणुयं । पाव मोक्खं पिहू सोक्खमयं भासंतु संतु णीसरिवि पुणु । खयरणरवाणरणंदण हो ।
धत्ता - पुणरवि वृत्तु खगेण सुरगिरिसिरिअहिसेयणु । जासु करइ हरिसेणु तुहु पणवहि सुहि तं जिणु ॥ २४ ॥ छ ॥
इ धम्मपरिक्खाए चउवग्गाहिट्टियाए चित्ताए । बृहहरिसेण कथाए चउत्यसंधी परिसमत्तो ॥ संधि ॥ ४॥ श्लोक ॥ २३३॥
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(2 ) 1.a in margin कामेण for जेण, 2.a oअवंभवउरित्थिरय, a अहल्लकयं, 3.a जोअइ अमलु, 5.b ०चुअं, 6a पहु, 8.b • वाणरभंदणहो, 10.b हरिसेण, b तुहुं पणवहि, a omits छ, 12. b चडयो संधी परिछेओ समत्तो, b परिसंमत्तो ॥ छ || संधि ||४|| omits श्लोक ।। २३३ ॥
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