________________
४. चउत्थ संधि
(1)
माणवेएँ वृत्तमित्त ण किंपि मुणिज्जइ । अण्णाधजणेण हरि सव्वण्हु भणिज्जइ ॥ छ ॥
भोपवणवेय णिसुणहि सुमित्त सुसम सुसम वि सुसमदुसमु दुसमसुसमि जिण चउवीस होंति वलव णव वि णव वासुएव तो मज्झि के वि पावंति मोवखु तो हरिहु मज्झि जोअंति मिल्लु सो वासुव वसुवपुत्तु किवि भणइ रमइ दहजम्म लेबि
तथाचोक्तं ॥ तैरेव ॥
धत्ता - इय अण्णोण्णविरोहु जाणंत वि अवगण्णहि । एक्कु वि उहरू उ गयविणेउ हरि मण्णहि ॥१॥
(2)
छक्काल कहमि जिह जिण हि वृत्त । दुसम सुसम दुसमुवि दुसमदुतम् । चक्कवर हवइ वारह ण भति । व चेव हवहि पडिवासुएव । सग्गं के विहु णरयदुक्खु । कंसासुररिउ चाणूरमल्लु । सव्वण्णु पुराण दिएहि पुत्तु । जम्माइ विवज्जिउ भणहि के वि ।
Jain Education International
मत्स्यः कूर्मो वराहश्च नारसिंहोऽथ वामनः । रामोरामश्च कृष्णश्च बुधाः कल्की च ते दशाः ॥ १॥ अक्षराक्षरनिर्मुक्तं जन्ममृत्यु विर्वाजतं ।
अव्ययं सत्यसंकल्पं विष्णुध्यायान् सीदति ॥२॥
5
(1) 2. सव्वह a drops छ, 3.a हो for भो, b वुत्तु, 4. सुसम सुसम् सुसमुवि सुदुसमु दुसमु, 5 b हवहिं, 6. b हवहिं, 7.a व्हो को वि मज्झे, b सुक्खु संग तह, a को वि, 8. b हरिहुं, a जेपच्छ for जोअंति, 9.a Roaण्डु b दियहि, 10a भणहि, b भणई नमइ दह, b भणहि, 11.a इह अण्णोण, अवगण्णहि, 12.a गयविवेय, a मण्णहि ।
For Private & Personal Use Only
10
www.jainelibrary.org