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सव्वण्णु ण पुच्छइ णरु कया वि तह पत्थइ ण कयत्थउ सया वि। ण मरेइ अमरु ण वि य हवेइ भयवज्जिउ णउ पहरणइ लेड़। सव्वंगु ण गच्छइ वाहणेण
अइ तित्तु करइ कि भोयणेण । 5 जो लच्छिणाहु सुरपहु अमिच्चु सो होइ केम किर परहो भिच्चु । इय कारणेण णउ विण्हु होइ सवण्णु अवरु जइ होइ को वि । जरमरणरोयभयजम्ममुक्कु पुवावरवयणविरहचुक्कु। तं कइ वि गवेसहु णाणदेहु जडवाइय तुम्हइ जाहु गेहु । तं णिसुणेविणु कंटइयगत्तु
सुहिवयणकमलु पुणु पुणु णियंतु। 10 घत्ता-णिग्गउ मणवेउ सुवद्धि लहु विप्प णिरुत्तर करेवि तहि ।
हरिसेणासाइ विविहफलु गउ पुव्वुत्तुज्जाणु जहि ।।२२॥
इय धम्मपरिक्खाए चउवगवहिट्टियाए चित्ताए। वुहहरिसेण कयाए तइआ संधी परिसमत्तो॥३॥छ।।
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(22) 2.b कहिं मि, 3.a परु for णरु, 4.bणा वि, b पहरणइं, 6.b आमच्चु,
7.a सव्वणु, b सव्वन्हु, b हवइ, 9.b तुम्हई, 1.b सुवुद्धिलइ, 12.a हरिसेणा विविहफलु in margin हरि is explained as वानर, b adds प before विविहफल, a गयउ, a जहि for जहि, b जहि, 14.b संधी परिच्छेओ समत्तो, a परिसमत्तो, a ।।3।।श्लोक।।२३०॥
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