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________________ ७. क्षीरमूढ कथा पुणरवि पभणइ सो मइसायरु को विवणीसरु णामें सायरु पज्जलंतइ णाणामणिदीवहो दुद्धदहियघयभोयणणं दिणि दहिहंडिए भिल्लाहिउ तोमरु मिट्ठाउ व्व समप्पिउ गोरसु अमाहरु सेट्ठि कहि लद्धउ तं णिसुणेवि वणीसरु भासिउ तो वणिय पच्चत्तरु दिज्जइ जवि अजुत्तु तो वि आसंघमि एम भणेवि धेणु तो अप्पेवि लहु छोहारदीउ गउ वणियरु सुरहि सुरहि कुसुमहिं उम्मालेवि पुरउ थवेविणु कंचणभायणु जइ विताए तं वयणु पडिच्चिउ गोवि जइ विविणए णो लग्गिय तो तोमरु पभणई मइँ लक्खिय ( 3 ) ३० (4) धत्ता- तो तोमरु पभणइ सेट्ठि मह णियकुलदेवि पयच्छइ । तुह देमि परोह पुरुहउँ रयणवत्थु जं इच्छइ ||४|| (5) Jain Education International खीहा णिसुणि दियसायरु | जलजाणेण तरेवि सायरु | णालिएर हो गउ दीवहो । यि तह सरिसु एक्क तें मंदिणि । दिट्टु करग्गधरियधणु तोमरु | भणिउ चिलाएँ भुजेवि गोरसु । जहि माँ अइसयरसु उवलद्धउ । महु कुलदेवि पयच्छइ भासिउ । णियकुलदेवयदेहु ण जुज्जइ । तुम्ह वयणु किर कि हउ लंघमि । जणु भविणु यह चप्पेवि । एत्त मज्झण्णए सो तोमरु | पवणेपणु यियणिहि लालिवि । भइ देवि तं देहि रसायणु । तो वि ण दिष्णु तासु हियइच्छिउ । देइ दुद्ध किं कासु विमग्गिय । एसाइट्ठविओएँ दुक्खिय । 5 1.a काइ, b भूयणासु, a दिण्णुउ, 2.4 हउ, 3 a गुणणियरसार, 5. b •वसि, a अंमु for अंबु, b अयालिऊ थक्कु, 6. जाव, a ताव, 7.b सुआसु, 8. b भणिउं, b वहइ for हवइ, a b पच्छत्तावाणल०, a उज्झेवि, 10.a कज्ज, 11.b भुअणयल, किंजंति मोक्खु धम्मत्थकाम, 12.b भणिउं, b गणिउं, 14. a परितुट्ठ । ( 4 ) 1.a पुणुरबि, a खीरकहा णिसुणहे, 2 b वाणीसरु, 3b जीवहो for हो, 4.bf for घय, a तहि, b सरिस, b तं for तें, 6. b मिट्ठा उच्छ समप्पिय चिलायं, 7.a कहि, a जहि मइ, 8.b वणीसर, 10.a हउ यावत्थु । For Private & Personal Use Only 10 www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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