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________________ घत्ता- अहवा कि वहुणा वित्थरेण तुज्झ अत्थु तुह कंतए । जारहि सहु सयलु वि विलसियउ मयणुम्माईयचित्तए ।।१५।। (16) २. द्विष मूढ कथा इय णिसुणे वि अदिण्ण पडुत्तरु ताए पडीवउ सो वि कडक्खिउ पेक्खहिं अहरु तणु वि णहमंडिउ तहि कहेवि दुव्वयणेहि ताडिउ दियवरिंद इय जाणहि रत्तं इह सोरठि धण्णधणरिद्धा होता खंधु वंकु णामंकिय बंकु मिलेवि गामभोत्तारहो खंधवंध उप्पाडणचित्तहो जाय असज्झवाहि तहो वंकहो तो सो वंकदास णामंके भणिउ ताय संसारि असारए मुय मणए सहु अत्थु ण गच्छइ धम्माधम्मु ण वर अणुलग्गउ इय जाणेवि ताय दाणुल्लउ इट्ठदेउ णियमणि झाइज्जइ गउ वहुधष्णी लहु बहुयहि घरु । मह रक्खणु गिय मुक्कु णिकिट्ठ उ । धाहावंतिहि सोलु ण खेडिउ । तेण वरहो सुवुद्धी णिद्धाडिउ । णिसुणहि दुटुं साहिज्जंतं । कोडि णरि गवइ सुपसिद्धा । अवरोप्पर गियदोसह सकिय । पीड करेइ जणही जोतारहो। असमत्थहो अणुदिणु झिज्जतही । संति अहव कहि पावकलंकहो। 10 पुतें णियकुलगयणससके । को वि ण कासु बि दुहगरूयारए । सयणु मसाणु जाव अणुगच्छइ । गच्छ जीवहो सुहदुहसंगउ । चितिज्जद सुप ते अइभरलउ। 15 सुहगइगमणु जेण पाविज्जइ । घत्ता-तं णि सुणेवि वंकें भासियउ बंकदास आयण्णहि । कालाणुरुउ मइ चितियउ पुत्तय जई तुहु मण्ण हि ॥१६।। (16) 1.b धणी, 2.a rubbed with white ink half line & other half with black ink and in the top margine the portion is written by some other person, महु रक्खर पियमणु निकिटउ. 3.a पेषहि, 4.a दुव्वयणे, b णिसारीउ, 5.a इह for इय, b जाणहि, b णिसुणहि, 6.b सोरट्ठदेसे धणरिद्धा, 7.a होता, b खंधर्वक, b णियदोसहि, 8.a णहो for जणहो, 9.b खंदकंद, 1.b कहि. 12.b भणिउं 13.b मणुएं सहुँ, b जाम. 15.b चितज्जइ i6.b इटठ, b भविज्जइ for झाइज्जइ, a जेम for जेण 17.b आयणहि. 18.b मई, a चितियउ, a जय for जइ, b तुहं मण्यहि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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