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________________ 5 पुन मगवेयरूउ पिच्छेविणु अवरोप्पर पभणहि वि हत्तेविणु । अम्ह भतिभावें रंजियमजु सइ पच्छक्खी हुउं णारायणु । जय जय विहु विण्हु पर मेसर लोयणिमित्तु णिहयअसुरेसर । पुडविहि एम मणंत लुढंता सम्भावे गीयाउ पढ़ता। अवरहि भणिय काइ किर पहु विण्हु चउन्भुउ कि ण वियप्पहु। भवहि केवि एहु वंभु पहाणउ अवर भहि वंभु चउवस गउ । इयत्वेण हवे सइ संकह अह तियच्छ सो लोया संकरु । इंदु वि सो सहसक्खु पसिद्ध उ कि ससरीरु जइ वि मयरद्धउ । अज्ण भ गहि किमणेय वियप्पे एहु णउ जाणिज्जइ विणु जप्पें । तो दियपवरें एक्कें वुत्तउ सरहु णिय आगमणु णिरुत्तउ। घत्ता- कि तुम्हइ कवणु वाउ करहु भेरीघंटावायगु ।। वायं अजिगं तेहिमि कयउ कि कणयासणि रोहणु ॥४॥ 10 5 (5) चत्तारि वेय छदसणाइ इह पुरवरि रंजियवुहयणाइ । सबलु वि जगु जाणइ हम्मे हम्मे णिच्चुच्छव विरइय विविहधम्मे। तुम्हइ पुणु किं वायहु कुणेहु कि कि अउव्वु अवरु वि मुणेहु । जियसत्तुसुएण तो भणियं णाउ विण अण्णवायह मुणियं । परजाणहु वाउ पहंजणउं जो पयड उ रुक्ख विहंजगउं । वेउ वि हरि णइं धावंतयहं दसणु वि मुणहुं गियकयंतहं । इह दुण्णि वि दुग्गयतणवणं गिण्हेविणु लक्कड़भारमिणं । आइय गुरु तूर णिएवि मए वायउ णउ जायए वायं मए । एव दुहो केवडउ भणेवि णिसुणियउ सददु घंटहो हणेवि । कोउहलेण कणयास गयं आरूढ उ मि भा भूसणयं । 10 घत्ता- जइ मइ हे भासणसंहिएण तुम्हइ भावइ दुण्णउं । तो एत्थु ण अच्छामि खणु वि हउ इय भणेवि उत्तिण्णउं ॥५॥ (4) 1.b मगवरूउ, b वईणहि पियसेविणु, 2.b सइं, 3.a सिहय for णिहय, 4.a एव, a ससावे for सब्भावे, 5.a अवरहि, b किण्ण, 6.b भणहि, b पहाणउं 6.b भणहिं बंभु वि चउ, 7.b लोया भंकरु 8.a इंदु सो वि, a सरीर उ, a omits वि, 9.a अण for अण्ण, b किमणेण, b ण for ण उ, 10.b दियमउरें, Il b repeats घत्ता- 11.b के for किं, 12.b कणयासण (अमितगति धर्म 3.66) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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