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________________ १०२ द लोप = वासुएव 10.9, सहएव 8.4, आइच्चणरेस 8.3, चित्तंगउ 8.1 द > ड = डज्झ, डहण ध > ह = परधणु, दुज्जोहण 8.4, लहु 4.2, रुहिर 4.4, दहिमुहु 9.9 ध > इढ = गोवड्ढण 1.26, वुड्ढी 9.9 न > ण = मणोहरु 8.2, अणुरत्त, 8.3, भीमसेणु 8.4, जोयण 8.9, णियेदसु 8.9, णयरी प > व = सेनावइ 9.22, कविठ्ठतरु 9.2, सुवण्णदीव 11.13, दीवंती, __ कोवजलधु, पावखलणु, गोविए 4.10, उवरि, अवहरेइ, कावालि 4.17, उवसग्गु 'प' लोप = रहणे उर 11.4, खगवइ, अमराउरि, गोउर > फ = फुल्ल, फोफल 1.8 > उ = आउण्ण, आउरिय, मणवेय रूउ, निउणमइ 3.4, वाणरदीउ 8.16, उहयसरूउ, गोउरेण फ> व = गुह भ > ह = रासह 4.16, अहिणव, सोह, बलहद्दु, लोहण > व = सवण, दवण > ज = जमहो 4.18, जमपासि 4.19, जोयण 8.9, जुहिट्ठिलु 8.4, दुजोहणु 9.14 य > उ = जिणालउ य > इ = अक्खइ, कोइल 3.9 र > ढ = आढविअ र लोप = पउ व > उ = जिणदेउ 9.13, वासुएउ 8.4, सुग्गीउ, 8.18-19 व > अ = तिहुअण व > य = जुयरायहो 3.3, गुणलायण्णहो व लोप = पइट्ठ 4.10 ष > छ = छट्ठ श > ह = दहलक्ख ण, दहविह श > स = सरीर, दस ह > भ = बंभण 10.6, वंभहो 4.12 समीकरण प्रबलतर ध्वनि अपने से दुर्बल ध्वनि को अपने में समाहित कर लेती है। इसी को समीकरण कहा जाता है। जब पश्चाद्वर्ती व्यंजन पूर्ववर्ती व्यञ्जन को प्रभावित करता है तब उसे पुरोगामी समीकरण कहा जाता है। जैसे- सुग्गीव कम्म, धम्म, जम्म आदि। इसी तरह जब पूर्ववर्ती व्यंजन पश्चाद्वर्ती व्यंजन को समीकृत करता है तब वह पश्चगामी समीकरण कहलाता है। जैसे- अग्गि, जोग्ग। कभी-कभी उष्मों का भी समीकरण होता है जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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