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________________ १०३ खध, माणथंम, पासत्थ आदि । संयक्त व्यंजन का सरलीकरण करके अनुनासिकीकरण के भी उदाहरण मिलते हैं । जैसे- जिणदंसण, पडिजपइ । संयुक्त व्यंजन परिवर्तन क्त > त = रत्तंवठ, मुत्त क्ष > क्ख = रक्खस 8.12, लक्खण 8.10 क्ष > ख = खणमित्तु 4.19, खंतव्वु ज्ञ > ण = णाणावरणीय कम्म __ > पण = वण्णाण, अण्णाणुवएस ग्घ > द्ध = दुद्ध 3.4 ज्य > ज्ज = रज्जंग, पित्तज्जरेण त्य > च्च = णच्चंती 10.3, सच्च त्म > प्प = अप्पउ, अप्पणु त्स > छ = उच्छव द्य > ज्ज = खिज्जइ 9.12, विज्जाहर 8.16, उज्जाण 11.1 ध्य/ध्व > ज्झ = बुज्झइ, अज्झाण र प > प्प = कपूर द्र > ६ = महि ष्ट्र > 8 = धयरट्ठ 8.4, अंध यविट्ठि 8.2 ष्टि > हि = मुट्ठि 2.7, दुट्ठ 4.22 ष्ठि > ट्ठि = परमेट्ठि 10.3 ष्ण > ग्रह = कण्ह, विण्हु ष्क > क्ख = पुक्खर स्क > ख = खंध स्व > सो = सोच्छंद, सच्छंद 4.17 स्म > म = विभिय स्न > ग्रह = ण्हाणकज्ज 8.6 2. अधिखण्डात्मक स्वनिम इसके अन्तर्गत अनुनासिकता विवृत्ति, सुरलहर तथा बलाघात आते हैं। धम्मपरिक्खा में इसके उदाहरण खोजे जा सकते हैं। शब्दसाधक प्रणाली अपभ्रंश में शब्द-रचना तीन प्रकार से होती है1) शब्दों में पूर्व प्रत्यय (उपसर्ग) तथा परप्रत्यय लगाकर 2) दो शब्द जोडकर, समास बनाकर, तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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