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________________ निजधरी कथायें पौराणिक संदर्भो में इन आख्यानों को देखा जाये तो पाठक को पुराणों के स्वरूप का सहजता पूर्वक आभास हो जायेगा। उनमें अतिरंजनाओं से भरी घटनाओं का बहुल्य है जिनपर विश्वास करना कठिन हो जाता है । मनोवेग ने ऐसे ही कतिपय आख्यानों का उल्लेख किया है और उनका खण्डन करने के लिए निजंधरी अथवा उन्हीं से मिलती-जुलती कल्पित कथाओं की रचना कर मनोवेग ने वादशालाओं में विप्रों के सामने प्रस्तुत की । ऐसी कथाओं में मार्जार कथा (4:3-7), जल शिला और वानर नृत्य कथा (5.8-9), कमण्डलु और गजकथा (5.10-12), वृहत्कुमारिका कथा, (7.2-6), और कविट्ठ खादन कथा (9.1-3) प्रमुख कथायें हैं । मनोवेग ने इन कथाओं की समीक्षा करने के पूर्व दस मूर्ख कथायें प्रस्तुत की। ग्रन्थ की प्रारम्भिक, द्वितीय और तृतीय सन्धियों में और उन्हें मधुबिन्दु का दृष्टान्त देकर मिथ्यात्व भाव की भूमिका पर संपुष्ट किया। जैन साहित्य में राम कथा धम्मपरिक्खा में राम-रावण कथा का भी उल्लेख आया है । आदिकवि वाल्मीकि के शब्दों में "रामो विग्रहवान् धर्मः" राम धर्म की प्रत्यक्ष मूर्ति हैं। इस धर्म मूर्ति का पौराणिक व्यक्तित्व सौजन्य और शौर्य-वीर्य के कारण जनमानस का श्रद्धास्पद प्रेरणास्रोत रहा है। ऐसे अजेय व्यक्तित्व को किसी धर्म, समाज अथवा राष्ट्र की कठोर सीमा में बांधना हमारा कदाग्रह होगा । इसलिए रामकथा देश-विदेश के कण कण में मिश्रित हो चुकी है और उसका ऐक्य रूप पाना संभव नहीं है। भारतीय साहित्यकार ने हर नये युग में उसे नया काव्यात्मक परिधान दिया और प्रतीक का एक ऐसा लोकप्रिय माध्यम बनाया जिसे यथेच्छ कल्पनाओं की कूची से युगधर्म के अनुसार चित्रित किया जा सके। जैन परम्परा में 63 शलाका पुरुष माने जाते हैं जिनमें 24 तीर्थंकर 12 चक्रवर्ती, 9 वलदेव, 9 वासुदेव और 9 प्रति-वासुदेव परिगणित हैं। इनमें राम, आठवें बलदेव और लक्ष्मण, आठवें वासुदेव तथा रावण, आठवें प्रतिवासुदेव हैं । वासुदेव सदैव प्रतिवासुदेव का घातक हुआ करता है । जैनाचार्यों ने रामकथा पर पर्याप्त साहित्य सृजन किया है । इसमें यतिवृषभ की तिलोय पण्णत्ति, विमलसूरि का पउमचरिय, संघदास की वासुदेवहिण्डी, रविषेण का पद्मपुराण, शीलाचार्य का च उपन्नमहापुरिसचरिय गुणभद्र का उत्तरपुराण, हरिभद्र का वृहत्कथाकोष, पुष्पदन्त का महापुराण, भद्रेश्वर की कहावली, और हेमचन्द्र का त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित प्रमुख हैं । हिन्दी में तो और अधिक लिखा गया है। इन ग्रन्थों में रामकथा के मुलतः दो रूप मिलते हैं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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