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________________ लेते ही वे तपस्वी हो गये थे (महा. आदि. 176-15)। धीवर कन्या सात्यकी पर आसक्त होने के कारण उन्होंने उसे मत्स्यगन्धा से योजनगन्धा और अक्षतयोनि का वरदान दिया। इसी के गर्भ से व्यास ऋषि का जन्म हुआ। इसी का विवाह भीष्म पितामह के पिता शान्तनु से हुआ (महा. आदि. 63.70-84; ब्रह्मा. 4.4.65-6; वायु. 61.47 आदि। उद्दालक और चन्द्रमती कथा उद्दालक आयोदधौम्य ऋषि के शिष्य अरुणि पांचाल का ही दूसरा नाम है । इन्हीं का पुत्र अष्टावक्र था । स्वप्न में स्खलित हुए इनके वीर्य को गंगा में एक कमल पर रख दिया गया जिसे रघु की पत्नी चन्द्रमती ने सूंघ लिया जिससे तत्क्षण गर्भाधान हो गया। उससे तृणबिन्दु ऋषि के आश्रम में नागकेतु का जन्म हुआ। कहा जाता है उद्दालक ने वहीं चन्द्रमती मे उसको कुमारी बनाकर विवाह कर लिया (महा. आदि. 3.21-32; वन, 132.1-9; वायु. 41.44; वाल्मीकि रामा उत्तरकाण्ड, सर्ग 2.3)। रावण की दसानन कथा (7.16-17) ___रावण विश्रवा का पुत्र था। तपस्या से प्रभावित होकर इसे शिव से दश शिर मिले (महा. वन. 275.16-251। यही शिर उसने अपने कंधों पर चिपका लिये । उसने अपनी ही पुत्र वधु नलकूबर की पत्नी रंभा से हठात् संभोग किया। इसी तरह पुंजिकस्थला नामक अप्सरा से भी बलात्कार किया जिसके कारण ब्रह्मा ने उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाने का अभिशाप दिया (वा. रा. युद्ध काण्ड, 13.11-14, सर्ग 111) ८. जैन पौराणिक विशेषतायें हरिषेण ने धर्मपरीक्षा में पौराणिक कथाओं की यथास्थान जैन दृष्टिकोण से समीक्षा की है। अमितगति की धर्मपरीक्षा में यह समीक्षा और अधिक गहराई से मिलती है। उदाहरणार्थ- विष्णु पर प्रश्नचिन्ह (H. 3.21; A. 10.21-40; विष्णु की कामुकता (H. 4.9-12; A. 11.26-28), ब्रह्मा और तिलोत्तमा का सम्बन्ध : H. 4.13-16; A. 11.29-47), ब्रह्मा और विष्ण की कथाओं पर प्रश्नचिन्ह (H. 3. 16-20; A. 13.37-102; 15. 56-66), राम कथा समीक्षा (H. 8.11; A. 16.1-21). पौराणिक कथाओं की व्याख्यात्मक समीक्षा (H. 9.4-5; A. 16.44-57; H.9.11-12; A. 16.58-84; H. 9.14; A. 16.99-100; H. 9.18-25; A. 16. 102-104; 17 वां परिच्छेद । इनमें की गई पौराणिक समीक्षा को विषयवस्तु में पाठक देख सकते हैं। उसे यहाँ दुहराने की आवश्यकता नहीं है। इस समीक्षा को देखने से इतनी बात तो स्पष्ट हो जाती है कि जंनाचार्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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