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हुआ (महा - शान्ति, 342.51 ) सन्तान पाने की कामना से उन्होंने लोपामुद्रा को उत्पन्न किया और उसी को बाद में अपनी पत्नी बनाया। उसी से दृढस्यु पुत्र का जन्म हुआ (महा - वनपर्व, 96-99 ) । तारक तथा दूसरे असुरों द्वारा संसार का कष्ट देखकर एक बार अगस्त्य समुद्र को चुल्लु में भरकर पी गये जिससे उनका नाम 'समुद्रचुलुक' और 'पीताब्धि' पड़ गया (भागवत. 4-1-36; महा. वन 105.3-6 ) । कमण्डल और घट से इनकी उत्पत्ति हुई थी । सृष्टि को उन्होंने कमण्डलु में समाहित कर लिया था ( भाग. 6 - 18.5; ब्रह्मा, 4–5–38; मत्स्य . 61.21-31; 2 1.29; 202.1 ) ब्रह्मा की मूर्ति चतुर्मुख, पद्मासनासीन और सरस्वती तथा सावित्री से युक्त होती है ( मत्स्य. 260.40 266.42; 284.6) 1
भागीरथी और गांधारी कथा (7.9-10 )
भगीरथ राजा अंशुमन के पुत्र दिलीप का पुत्र था । अपने पितरों- सगरपुत्रों का उद्धार करने के लिए वह गंगा को पृथ्वी पर ले आया । उसी गंगा ने पाताल लोक में पहुंचकर सगर पुत्रों का उद्धार किया । भगीरथ की पुत्री होने के कारण गंगा भागीरथी कहलाई । वही भागीरथी राजा के उरु पर बैठने के कारण उर्वशी कहलाई । भगीरथ की उत्पत्ति दो स्त्रियों के परस्पर स्पर्श मात्र से हुई थी (महा. वन, 25 108.9; शिवपुराण 11.12; भागवत. 9.9.2-13; ब्रह्मा. 3.54.48-51; वायु 47.49 आदि.) ।
गांधारी के विषय में ऐसी ही कथा प्रचलित है । गांधारी फनस वृक्ष का अलिंगन करने से गर्भवती हो गई । व्यास से सौ पुत्रों की याचना वह पहले ही कर चुकी थी। गांधारी के गर्भ से एक मांस पिण्ड का प्रादुर्भाव हुआ जिसके सौ टुकड़े किये गये और उन्हीं टुकड़ों से दुर्योधन आदि सौ पुत्रों की उत्पत्ति हुई ( महा. आदि. 114 - 8; 115 119; भाग 9.22.26; मत्स्य. 50.47-48; आदि) ।
मंदोदरि मय दानव तथा रंभा की पुत्री थी । पुराणानुसार मय एक प्रसिद्ध दानव था ( वाल्मिकी रामायण, 52.8 - 12 ) । उसकी वीर्य मिश्रित कोपीन का जलपान करने से मेंढकी गर्भवती हुई जिसे कहा जाता है मय सात, हजार वर्ष तक स्तम्भित किये रखा। बाद में उससे मंदोदरि उत्पन्न हुई ( भाग. इसी से फिर वही इन्द्रजित
7.18 ) । वही बाद में रावण की पत्नी बनी। नामक पुत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ (महा. वन पराशर ऋषि और योजनगंधा ( 7.14-15 )
285.8 ) ।
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पराशर ऋषि वसिष्ठ के पौत्र और शक्ति तथा अदृश्यन्ती सत्यवती के पुत्र थे । बारह वर्षों तक माता के गर्भ में रहकर उन्होंने वेदाभ्यास किया था जन्म
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