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चित्त-समाधि : जैन योग
हिंसक होना चाहते हैं ।' क्योंकि साधारण स्थितियों में ही हम अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हैं। पर कुछ लोगों का यह नियंत्रण काफी कमजोर होता है। प्रसिद्ध मनोविज्ञानशास्त्री डाक्टर इविन तथा डाक्टर मार्क के अनुसार, 'ऐसे व्यक्तियों के मस्तिष्क के आदिम हिस्से में कुछ विशेष घटता रहता है।'
२. प्राभोगनिर्वतित- जो मनुष्य क्रोध के विपाक आदि को जानता हुआ क्रोध करता है, उसका क्रोध आभोगनिर्वतित कहलाता है। यह स्थानांग के वृत्तिकार अभयदेव सूरि की व्याख्या है। प्राचार्य मलय गिरि ने इसकी व्याख्या भिन्न प्रकार से की है। उनके अनुसार-एक मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य के अपराध को भलीभांति जान लेता है । उन्हें अपराध मुक्त करने के लिये वह सोचता है कि सामने वाला व्यक्ति नम्रता-पूर्वक कहने से मानने वाला नहीं है। उसे क्रोधपूर्ण मुद्रा ही पाठ पढ़ा सकती है। इस विचार से वह जान-बूझकर क्रोध करता है। इस प्रकार का क्रोध आभोगनिवर्तित कहलाता है।
प्राचार्य मलयगिरि की व्याख्या अधिक स्पष्ट और हृदयग्राही है। इसकी व्याख्या अन्य नयों में भी की जा सकती है। कोई मनुष्य अपने विषय में किसी दूसरे के द्वारा किये गए प्रतिकल व्यवहार को नहीं जान लेता तब तक उसे क्रोध नहीं पाता। उसकी यथार्थता जान लेने पर उसके मन में क्रोध उभर आता है। यह प्राभोगनिर्वर्तित क्रोध है -स्थिति का यथार्थ बोध होने पर निष्पन्न होने वाला क्रोध है।
अनाभोगनिर्वर्तित क्रोध—जो मनुष्य क्रोध के विपाक आदि को नहीं जानता हुआ क्रोध करता है, उसका क्रोध अनाभोगनिर्वतित क्रोध कहलाता है।
मलयगिरि के अनुसार--जो मनुष्य किसी विशेष प्रयोजन के बिना गुण-दोष के विचार से शून्य होकर प्रकृति की परवशता से क्रोध करता है, उसका क्रोध अनाभोगनिर्वतित क्रोध कहलाता है।
कभी-कभी ऐसा भी घटित होता है कि कोई मनुष्य स्थिति की यथार्थता को नहीं जानने के कारण क्रुद्ध हो उठता है । कल्पना या संदेह जनित क्रोध इसी कोटि के होते हैं।
कुछ लोगों को अपने वैभव आदि की पूरी जानकारी नहीं होती। फलतः वे घमंड भी नहीं करते। उसकी वास्तविक जानकारी प्राप्त होने पर उनमें अभिमान करने जैसा कुछ नहीं होता, फिर भी वे अपनी तुच्छ संपदा को बहुत मानते हुए अभिमान करते रहते हैं। उन्हें विश्व की विपुल संपदा का ज्ञान नहीं होता। ये दोनों प्रकार के अभिमान क्रमशः प्राभोगनिर्वतित और अनाभोगनिवर्तित होते हैं।
३. बौद्ध साहित्य में पत्थर, पृथ्वी और पानी की रेखा के समान मनुष्यों का वर्णन मिलता है।
भिक्षुप्रो ! संसार में तीन तरह के आदमी हैं । कौन-सी तीन तरह के ? पत्थर पर खींची रेखा के समान प्रादमी, पृथ्वी पर खींची रेखा के समान प्रादमी,
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