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________________ इसी प्रकार चित्तसमाधि मार्ग से संबंधित १४ शीर्षक चुने गए हैं, जो इस प्रकार हैंअभ्युत्थान, अनुशासन, दर्शन, दृष्टि, ज्ञान, पंचज्ञान, मतिज्ञान, शरीर, वाणी, मन, क्षयउपशम, सुख, सत्त्व एवं बल । इसी प्रकार इन्द्रियातीत चेतना, मुनिधर्म, अतीन्द्रिय ज्ञान आदि विषयों पर पाठ संकलित किए गए हैं । ___ठाणं का यह पाठ्यक्रम विषयों की दृष्टि से जिज्ञासुओं के लिए काफी उपयोगी सिद्ध होगा। उपर्युक्त आगमों के अतिरिक्त 'उत्तरज्झयणाणि' से भी चार अध्ययन मुद्रित किए गए हैं, जो आध्यात्मिक साधना पर मौलिक प्रकाश डालते हैं। इन अध्ययनों में 'सम्मत्त-परक्कमे का भी समावेश किया गया है। इस अध्ययन को जैन साधना मार्ग का श्रेष्ठ पथ-प्रदर्शक माना जा सकता है। परिशिष्ट में मोक्खपाहुड, समयसार, मनोऽनुशासन तथा हठयोगप्रदीपिका का चयन किया गया है। इन पर टिप्पण नहीं लिखे गए हैं । सूयगडो, भगवई, प्रश्नव्याकरण तथा दशाश्रुतस्कंध के पाठ भी संगृहीत हैं, जिनपर टिप्पण भी लिखे गए हैं। ___इस पाठ्यक्रम को और अधिक समृद्ध बनाने की योजना है। जैन साधना पद्धति के विषय में सिद्धसेन दिवाकर, जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण, हरिभद्र, हेमचन्द्राचार्य, शुभचन्द्र एवं यशोविजयजी का साहित्य उपलब्ध है । प्रस्तुत पाठ्यक्रम में आगमिक ग्रन्थों के समावेश के क्रम में कुछ व्यतिक्रम हुआ है । यह सामग्री विभिन्न स्तरों में संगृहीत की गयी थी, अतः कहीं-कहीं क्रमबद्धता में सामंजस्य नहीं हो पाया है। पाठकवृन्द इस संग्रह का उपयोग इस बात को ध्यान में रखकर ही करेंगे। सामग्री के विषयों में काफी विविधता है जो जैन साहित्य की समृद्धि का द्योतक ___ यह पाठ्यक्रम परमश्रद्धेय युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ के निर्देशन में समणी कुसुमप्रज्ञा एवं सुश्री निरंजना जैन ने संकलित किया है । इस दिशा में यह पहला प्रयत्न है । जैन आगमों में ध्यान साधना के तत्त्वों को एकत्र करने का शायद यह पहला प्रयास है । इसकी अपूर्णता को दूर करने के लिए परिपूरक पाठ्यक्रम निर्माण की हमारी योजना है । जैन साधना का सर्वांगीण अध्ययन अपेक्षित है, जिसकी पूर्ति ऐसे ही पाठ्यक्रमों से हो सकेगी। जैन विश्व भारती, लाडनूं दिनांक १४ नवम्बर, १९८५ मथमल टाटिया निदेशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003671
Book TitleChitta Samadhi Jain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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