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संपादकीय
"चित्तसमाधि : जैनयोग" में एक ऐसे पाठ्यक्रम का संयोजन किया गया है जिससे जैन साधना पद्धति के कई महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर प्रकाश प्राप्त हो जाता है । जैन आगमिक ग्रन्थों में योग विषयक सामग्री यत्र-तत्र प्रकीर्णक रूप से प्राप्त होती है। साधारण विद्यार्थी के लिये इस सामग्री को पहचानना दुष्कर है। इसलिए प्राथमिक रूप से यह सामग्री चयनित की गई है। लगभग प्रत्येक पाठ-संग्रह के अंत में विस्तृत टिप्पण दिए गए हैं, जो कई अस्पष्ट विषयों को स्पष्ट करते हैं। इस संकलन में कुल १२ ग्रन्थों से पाठ संगृहीत किए गए हैं । जैन ग्रन्थों के अतिरिक्त 'हठयोग प्रदीपिका' का सम्पूर्ण पाठ मुद्रित किया गया है।
आयारो से प्रेक्षाध्यान, अपरिग्रह, अहिंसा, ध्यानासन, समाधिमरण आदि विषयों पर पाठ संकलित किए गए हैं तथा उन पर ६३ टिप्पण लिखे गए हैं। प्रेक्षा-ध्यान एक नवीन विषय है जिस ओर विद्वानों का ध्यान विशेष रूप से आकृष्ट हुआ है। इस प्रसंग में एक पाठ विशेष महत्त्वपूर्ण है जो इस प्रकार है-'आयतचक्खू लोगविपस्सी लोगस्स अहोभागं जाणइ, उड्ढं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ, संधि विइत्ता इह मच्चिएहिं, एस वीरे पसंसिए जे बद्धे पडिमोयए ! जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो, अंतो अंतो पूइ देहंतराणि पासइ पुढो वि सवंताई पंडिए पडिलेहए।" इसमें अशुचि भावना को बताते हुए वैराग्य-साधना का मार्ग स्पष्ट किया गया है। वैराग्य की वृद्धि के साथ-साथ आत्मानुभूति का विकास होता है एवं साधक क्रमशः निर्वाणपथ पर अग्रसर होता है। प्राचीन भारतीय साधना का यह एक गंभीर सूत्र है ।
आचारांग के अन्तर्गत धुतवाद का एक विशेष स्थान है । प्राचीन बौद्ध साहित्य में भी धुत पर विशेष चर्चा पायी जाती है । धुत साधना को अत्यन्त उत्कृष्ट स्थान प्राप्त था, जिसका आचरण साधारण साधक के लिये अनिवार्य नहीं माना जाता था । समाधिमरण पर संकलित पाठ भी विशेष मननीय हैं।
ठाणं जैनदर्शन का एक विश्वकोष है। इससे अनेक पाठ संगृहीत किए गए हैं। चित्तसमाधि की दृष्टि से १० शीर्षकों में ठाणं से पाठ संकलित हुए हैं। असमाधि के प्रभव-स्थान, समाधि के विघ्न, समाधि के मार्ग एवं समाधि के फलों की चर्चा दस विभागों में की गयी है । ठाणं में कई बिखरे हुए विषयों को शीर्षकों के माध्यम से स्पष्ट किया गया है। उदाहरणार्थ-चित्तसमाधि के विघ्न के अन्तर्गत मूर्छा, प्रमाद भयस्थान, अज्ञान, मोह, राग, कामगुण एवं आस्रव से संबंधित पाठ एकत्रित किए गए हैं।
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