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सूयगडो
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देता है, वह उसका परमबन्धु होता है। २२. (सू० १।१४।१२)
___ मग्गं ण"""""एक अटवी है । वह गड्डों, पत्थरों, कन्दराओं तथा वृक्षों से दुर्गम है । ऐसी अटवी से प्रतिदिन आने-जाने के कारण कोई व्यक्ति उसकी पगडंडियों से परिचित हो जाता है । किन्तु वह भी उस अटवी में अन्धकार के कारण पूर्व परिचित पगडंडियों को भी नहीं देख पाता। २३. (सू० १।१४।१३)
कोविए---कोविद का अर्थ है-ज्ञानी । जो ग्रहण-शिक्षा में निपुण होता है, वह जान लेता है कि उसे कैसा आचरण करना चाहिये और कैसा आचरण नहीं करना चाहिये । जो व्यक्ति सर्वज्ञप्रणीत आगमों के अनुसार वर्तन करने में निपुण होता है, वह कोविद कहलाता है। २४. (सू० ११)
वीरियं-वीर्य का अर्थ है--शक्ति, बल। उसके तीन प्रकार हैं-सचित्त वीर्य, अचित्त वीर्य और मिश्र वीर्य । सचित्त वीर्य तीन प्रकार का है
१. मनुष्यों का- अर्हत्, चक्रवर्ती, बलदेव आदि का वीर्य ।
२. पशुओं का हाथी, घोड़ा, सिंह, व्याघ्र, वराह, अष्टापद आदि का वीर्य । जैसे--भेड़िया उछलकर भेड़ को मार डालता है वैसे ही अष्टापद उछलकर हाथी को मार डालता है। यह अष्टापद की शक्ति है।
३. निर्जीव पदार्थों का-जैसे गोशीर्षचन्दन का लेप ग्रीष्मकाल में दाह का नाश करता है और शीतकाल में शीत का नाश करता है । जैसे--रत्नकंबल शीतकाल में गरम और ग्रीष्म में ठण्डा होता है।
अचित्त वीर्य :--आहार, स्निग्ध पदार्थ, भक्ष्य और भोज्य पदार्थों की शक्ति को अचित्त वीर्य कहा जाता है । इसी प्रकार कवच आदि आवरणों का तथा अन्यान्य शस्त्रों की शक्ति भी अचित्त वीर्य कहलाती है । आहार में काम आने वाले पदार्थों की शक्ति भिन्न-भिन्न होती है । जैसे घेवर प्राणों को उत्तेजित करने वाला, हृदय को प्रसन्न करने वाला और कफ का नाशक होता है। इसी प्रकार औषधियों की भी अपनी-अपनी शक्ति होती है । शल्य को निकालने, घाव भरने, विष के प्रभाव को दूर करने, बुद्धि को वृद्धिगत करने–ये भिन्न-भिन्न औषधियों की शक्तियां हैं। कुछ विषघाती द्रव्य ऐसे होते हैं जिनको सूंघने मात्र से विष निकल जाता है। कुछ ऐसे होते हैं जिनका लेप करने से विष दूर होता है । कुछ के आस्वादमात्र से विष नष्ट हो जाता है । एक द्रव्य ऐसा होता है जिसको खा लेने पर एक महीने तक भूख नहीं लगती, शक्ति की हानि भी नहीं होती।
___कुछ द्रव्यों के मिश्रण से बनी हुई बाती पानी से भी जल उठती है। कश्मीर आदि प्रदेशों में लोग कांजी से दीया जलाते हैं।
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