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________________ सूयगडो संवर तिउति उ मेहावी जाणं लोगंसि पावगं । तुटुंति पावकम्माणी' णवं कम्ममकुव्वओ ॥१।१५।६ अकुव्वओ णवं ण त्थि 'कम्मं णाम विजाणतो । णच्चाण से महावीरे' 'जे ण जाई ण मिज्जति" ॥१।१५७ ध्यान और कायोत्सर्ग झाणजोगं "समाहट कायं वोसेज्ज सव्वसो । तितिक्खं परमं णच्चा आमोक्खाए परिव्वएज्जासि ।।१।८।२७ भावना भावणाजोगसुद्धप्पा जले णावा व आहिया । णावा व तीरसंपण्णा सव्वदुक्खा तिउट्टति ॥१।१५।५ अनित्यानुप्रेक्षा "डहरा बुड्ढा य पासहा गब्भत्था वि चयंति माणवा । सेणे जह वट्टयं हरे एवं आउखयंमि तुट्टई ॥१।२।२ 'देवा गंधव्वरक्खसा असुरा भूमिचरा सिरीसवा । राया णरसेट्ठिमाहणा ठाणा ते वि चयंति दुक्खिया ॥१।२।५ 'कामेहि य संथवेहि य कम्मसहा कालेण जंतवो।। ताले जह बंधणच्चुए एवं आउखयम्मि तुट्टई ॥१॥२॥६ समता उवणीयतरस्स ताइणो" भयमाणस्स विविक्कमासणं । सामाइयमाहु तस्स जं जो अप्पाण भए ण दंसए ॥१।२।३६ "सव्वं जगं तू समयाणुपेही पियमप्पियं कस्सइ णो करेज्जा। १।१०।७ के प्रथम दो चरण अहिंसा पुढवीजीवा पुढो सत्तार आउजीवा तहागणी । वाउजीवा पुढो सत्ता तण रुक्खा सबीयगा ॥१।११।७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003671
Book TitleChitta Samadhi Jain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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