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उत्तरज्झयणाणि
१७१ ३. चारित्र-विनय-चारित्र का यथार्थ प्ररूपण और प्रनुष्ठान करना । ४. मनो-विनय-अकुशल-मन का निरोध और कुशल की प्रवृत्ति । ५. वचन-विनय-अकुशल-वचन का निरोध और कुशल की प्रवृत्ति । ६. काय-विनय-अकुशल-काय का निरोध और कुशल की प्रवृत्ति । ७. लोकोपचार-विनय-लोक-व्यवहार के अनुसार विनय करना ।
तत्त्वार्थ-सत्र (६/२३) में विनय के प्रकार चार ही बतलाए गए हैं-१. ज्ञानविनय, २. दर्शन-विनय, ३. चारित्र-विनय और ४. उपचार-विनय । ५६. श्लोक ३३
वैयावृत्त्य प्राभ्यन्तर तप का तीसरा प्रकार है। स्थानांग (१०/७१) के आधार पर उसके दस प्रकार हैं-१. प्राचार्य का वैयावृत्त्य, २. उपाध्याय का वैयावृत्त्य, ३. स्थविर का वैयावृत्त्य, ४. तपस्वी का वैयावृत्त्य, ५. ग्लान का वैयावृत्त्य, ६. शैक्ष (नव दीक्षित) का वैयावृत्त्य, ७. कुल का वैयावृत्त्य, ८. गण का वैयावृत्त्य, ६. संघ का वैयावृत्त्थ, १०. सार्मिक का वैयावृत्त्य । भगवती (२५/७/८०२) और औपपातिक (सूत्र २०) के वर्गीकरण का क्रम उपर्युक्त क्रम से कुछ भिन्न है । वह इस प्रकार है-१. प्राचार्य का वैयावृत्त्य, २. उपाध्याय का वैयावृत्त्य, ३. शैक्ष का वैयावृत्त्य, ४. ग्लान का वैयावृत्त्य, ५. तपस्वी का वैयावृत्त्य, ६. सार्मिक का वैयावृत्त्य, ७. स्थविर का वैयावृत्य, ८. कुल का वैयावृत्त्य, ६. गण का वैयावृत्त्य और १०. संघ का वैयावृत्त्य ।
तत्त्वार्थ सूत्र (६/२४) में ये कुछ परिवर्तन के साथ मिलते हैं--१. प्राचार्य का वैयावृत्त्य, २. उपाध्याय का वैयावृत्त्य, ३. तपस्वी का वैयावृत्त्य, ४. शैक्ष का यावृत्त्य, ५. ग्लान का वैयावृत्त्य, ६. गण का वैयावृत्त्य (गण-श्रुत-स्थविरों की परम्परा का संस्थान), ७. कुल का वैयावृत्त्य (एक प्राचार्य का साधु-समुदाय 'गच्छ' कहलाता है । एक-जातीय अनेक गच्छों को 'कुल' कहा गया है), ८. संघ का वैयावृत्त्य (संघ अर्थात् साधु-साध्वी, श्रावक और श्राविका), ६. साधु का वैयावृत्त्य और १०. समनोज्ञ का वैयावृत्त्य (समान समाचारी वाले तथा एक मण्डली में भोजन करने वाले साधु 'समनोज्ञ' कहलाते हैं)।
___ इस वर्गीकरण में स्थविर और सार्मिक-ये दो प्रकार नहीं हैं, उनके स्थान पर साघु और समनोज्ञ-ये दो प्रकार हैं। गण और कुल की भांति संघ का अर्थ भी साधुपरक ही होना चाहिये । ये दसों प्रकार केवल साधु-समूह के विविध पदों या रूपों से सम्बद्ध हैं। ६०. श्लोक ३४
स्वाध्याय प्राभ्यन्तर तप का चौथा प्रकार है। उसके पांच भेद हैं-१. वाचना, २. प्रच्छना, ३. परिवर्तना, ४. अनुप्रेक्षा और ५. धर्मकथा ।
तस्वाथ सूत्र (९/२५) में इनका क्रम और नाम भी भिन्न है-1. वाचना, २.
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