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________________ चित्त-समाधि : जन योग ३. गो- मूत्रिका - गो - मूत्रिका की तरह बलखाते हुए (बाएं पार्श्व के घर से दाएं पार्श्व के घर में और दाएं पार्श्व के घर में जाते हुए ) 'मुझे भिक्षा मिले तो लूं, अन्यथा नहीं - ' इस संकल्प से भिक्षा करने का नाम गोमूत्रिका है । १६४ ४. पतंग-वीथिका - पतंग जैसे प्रनियत क्रम से उड़ता है, वैसे अनियत क्रम से ( एक घर से भिक्षा ले फिर कई घर छोड़ फिर किसी घर में ) मुझे भिक्षा मिले तो लूं अन्यथा नहीं - इस प्रकार संकल्प से भिक्षा करने का नाम पतंग-वीथिका है । ५. शंबूकावर्ता-शंख के प्रावर्त्तो की तरह भिक्षाटन करने को शंबूकावर्ता कहा जाता है । इसके दो प्रकार हैं- - १. आभ्यन्तर शंबूकावर्ता, २. बाह्य शंबूकावर्ता । (क) शंख के नाभि क्षेत्र से प्रारम्भ हो बाहर आने वाले आवर्त की भांति गांव के भीतरी भाग से भिक्षाटन करते हुए बाहरी भाग में आने को 'आभ्यन्तर - शंबूकावर्ता ' कहा जाता है । (ख) बाहर से भीतर जाने वाले शंख के प्रावर्त्त की भांति गांव के बाहरी भाग से भिक्षाटन करते हुए भीतरी भाग में आने को 'बाह्य शंबूकावर्ता' कहा जाता है । स्थानांग वृत्ति के अनुसार (क) बाह्य शंबूकावर्ता की व्याख्या है और (ख) श्राभ्यन्तर शंबूकावर्ता की व्याख्या है । किन्तु इन दोनों व्याख्यानों की अपेक्षा पंचाशकवृत्ति की व्याख्या अधिक हृदयस्पर्शी है । उसके अनुसार दक्षिणावर्त शंख की भांति दांई ओर प्रवर्त्त करते हुए भिक्षा मिले तो लूं नहीं तो नहीं इस संकल्प से भिक्षा करने का नाम आभ्यन्तर शंबूकावर्ता है । इसी प्रकार वामावर्त शंख की भांति बांई ओर प्रवृत्त करते हुए भिक्षा मिले तो लूं नहीं तो नहीं - इस संकल्प से भिक्षा करने का नाम बाह्य शंबूकावर्ता है । ६. श्रायतं गत्वा प्रत्यागता – सीधी सरल गली के अन्तिम घर तक जाकर वापिस आते हुए भिक्षा लेने का नाम प्रायतं गत्वा प्रत्यागता है । उन्नीसवीं गाथा में ये छह प्रकार निर्दिष्ट हैं और प्रस्तुत श्लोक में गोचराय के आठ प्रकारों का उल्लेख है । वे प्रायतं गत्वा प्रत्यागता से पृथक् मानने पर तथा शंबूकावर्ता के उक्त दोनों प्रकारों को पृथक्-पृथक् मानने पर बनते हैं । मूलाराधना में गोचराय के छह प्रकार हैं - १. गत्वा प्रत्यागता, २. ऋजु-वीथि ३. गो- मूत्रिका, ४. पेलविया ५. शंबूकावर्ता और ६. पतंगवीथि । जिस मार्ग से भिक्षा लेने जाएं उसी मार्ग से लौटते समय भिक्षा मिले तो वह सकता है अन्यथा नहीं - यह गत्वा प्रत्यागता का अर्थ है । प्रवचनसारोद्धार के अनुसार गली की एक पंक्ति में भिक्षा करता हुआ जाता है। और लौटते समय दूसरी पंक्ति से भिक्षा करता है । सरल मार्ग से जाते समय यदि भिक्षा मिले तो ले सकता है, अन्यथा नहीं यह ऋजु-वीथिका अर्थ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003671
Book TitleChitta Samadhi Jain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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