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________________ उत्तरज्झयणाणि अनशन का अनधिकारी है । विशिष्ट स्थिति उत्पन्न हुए बिना जो अनशन करे तो समझना चाहिये कि वह चरित्र से खिन्न है। संलेखना प्राचारांग में बताया गया है कि जब मुनि को यह अनुभव हो कि इस शरीर को धारण करने में मैं ग्लान हो रहा हूं, तब वह क्रम से पाहार का संकोच करे संलेखना करे.--प्राहार संकोच के द्वारा शरीर को कृश करे । संलेखना के काल संलेखना के तीन काल हैं----१. जघन्य --छह मास का काल, २. मध्यम-एक वर्ष का काल और ३. उत्कृष्ट -१२ वर्ष का काल । उत्कृष्ट संलेखना के काल में प्रथम चार वर्षों में दूध, घी आदि विकृतियों का त्याग अथवा प्राचाम्ल किया जाता है । सूत्र में प्रथम चार वर्षों में विचित्र तप करने का उल्लेख नहीं है । किन्तु शान्त्याचार्य ने निशीथ चूणि के आधार पर इसका अर्थ यह किया गया है कि संलेखना करने वाला विचित्र तप के पारण में विकृतियों का परित्याग करे । प्रवचनसारोद्धार में भी यही क्रम है। प्रथम चार वर्षों में विचित्र तप किया जाता है और उसके पारण में यथेष्ट भोजन किया जाता है । दूसरे चार वर्षों में विचित्र तप किया जाता है, किन्तु पारण में विकृति का परित्याग किया जाता है। मागे का क्रम समान उत्तराध्ययन (३६/२५१-२५५) के अनुसार इस संलेखना का क्रम इस प्रकार प्रथम चार वर्ष-विकृति परित्याग अथवा आचाम्ल । द्वितीय चार वर्ष-विचित्र तप---उपवास, बेला, तेला प्रादि और पारण में यथेष्ट भोजन । नौवें और दसवें वर्ष-एकान्तर उपवास और पारण में प्राचाम्ल । ग्यारहवें वर्ष की प्रथम छमाही-उपवास या बेला। ग्यारहवें वर्ष की द्वितीय छमाही-विकृष्ट तप-तेला, चौला आदि तप । समूचे ग्यारहवें वर्ष में पारण के दिन-प्राचाम्ल । प्रथम छमाही में प्राचाम्ल के दिन ऊनोदरी की जाती है और दूसरी छमाही में उस दिन पेटभर भोजन किया जाता बारहवें वर्ष में-कोटि-सहित प्राचाम्ल अर्थात् निरन्तर प्राचाम्ल अथवा प्रथम दिन प्राचाम्ल, दूसरे दिन कोई दूसरा तप और तीसरे दिन फिर आचाम्ल । बारह वर्ष के अन्त में-अर्द्ध-मासिक या मासिक अनशन, भक्त-परिज्ञा प्रादि । निशीथ-चूणि के अनुसार बारहवें वर्ष में क्रमशः प्राहार की इस प्रकार कमी की जाती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003671
Book TitleChitta Samadhi Jain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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