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१४०.
सत्य की व्याख्या करने वाले अनेक मिथ्या दृष्टिकोणों की ओर झुक जाता है। नीय-कर्म होता है । विशेष - भगवती, १/३। २१ वंजणद्धि
चित्त-समाधि : जन योग
मतवाद हैं । उनके जाल में फंसकर मनुष्य इस झुकाव का मुख्य कारण काङ्क्षा-मोह -
एक व्यंजन के आधार पर शेष व्यंजनों को प्राप्त करने वाली क्षमता का नाम 'व्यञ्जन - लब्धि' है ।
२२ एगग्गमणसं तिवेसणयाए
इस सूत्र में एकाग्र मन की स्थापना ( मन को एक अग्र – आलम्बन पर स्थित करने ) का परिणाम 'चित्त निरोध' बतलाया गया है । मन गुप्ति से एकाग्रता प्राप्त होती है । इससे मन की तीन अवस्थाएं फलित होती हैं - १. गुप्ति, २. एकाग्रता, ३. निरोध ।
मन को चंचल बनाने वाले हेतुप्रों से उसे बचाना, सुरक्षित रखना — गुप्ति कहलाती है । ध्येय-विषयक ज्ञान की एकतानता 'एकाग्रता' कहलाती है । मन की विकल्पशून्यता को 'निरोध' कहा जाता है ।
महर्षि पतञ्जलि ने चित्त के चार परिणाम बतलाए हैं - १. व्युत्थान, २ . समाधिप्रारंभ, ३. एकाग्रता और ४. निरोध । यहां एकाग्रता और निरोध तुलनीय हैं । २३ संजमेणं (सूत्र २७ से २६ )
स्थानांग में उपासना के दस फल बताए गए हैं । उनमें से संयम और अनास्रव, तप और व्यवदान तथा प्रक्रिया और सिद्धि का कार्य-कारण-माला के रूप में उल्लेख है । बौद्ध दर्शन में बाईस इन्द्रियां मानी गई हैं । उनमें श्रद्धा, वीर्य, स्मृति, समाधि और प्रज्ञा - इन पांच इन्द्रियों तथा प्रज्ञातमाज्ञास्यामीन्द्रिय, आज्ञेन्द्रिय और श्राज्ञातावीन्द्रिय- इन तीन अन्तिम इन्द्रियों से विशुद्धि का लाभ होता है इसलिये इन्हें व्यवदान का हेतु माना गया है। श्रद्धा, वीर्य, स्मृति, समाधि और प्रज्ञा के बल से क्लेश का विष्कम्भन और आर्य मार्ग का आवाहन होता है । अन्तिम तीन इन्द्रिय-अनास्रव हैं । निर्वाणादि के उत्तरोत्तर प्रतिलम्भ में इनका आधिपत्य है । व्यवदान का अर्थ 'कर्म-क्षय' या 'विशुद्धि' है । यहाँ निर्जरा के स्थान में इसका प्रयोग हुआ है ।
२४ सुहसाएणं
उत्सुकता, निर्दयता, उद्धत - मनोभाव, शोक और चरित्र विकार - इन सबका मूल सुख की प्राकाङ्क्षा है । उसे छोड़कर कोई भी व्यक्ति अनुत्सुक, दयालु, उपशान्त, अशोक और पवित्र आचरण वाला हो सकता है । उत्सुकता आदि सुख की प्राकाङ्क्षा के परिणाम हैं । वे कारण के रहते परित्यक्त नहीं होते । आवश्यक यह है कि कारण के त्याग का प्रयत्न किया जाए, परिणाम अपने श्राप व्यक्त हो जाएंगे ।
२५ श्रपडिबद्धयाए
संग और प्रसंग – ये दो शब्द समाज और व्यक्ति के सूचक हैं ।
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अध्यात्म की
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