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चित्त-समाधि : जैन योग
१३ काउस्सग्गेणं
समाचारी-अध्ययन में कायोत्सर्ग को 'सर्व-दुःख विमोचक' कहा गया है। शान्त्याचार्य ने कायोत्सर्ग का अर्थ-'पागमोक्त नीति के अनुसार शरीर को त्याग देना' किया है। क्रिया-विसर्जन और ममत्व-विसर्जन-ये दोनों प्रागमोक्त नीति के अंग हैं । १४ चवथुइ
___सामान्यत: 'स्तुति' और 'स्तव' इन दोनों का अर्थ भक्ति और बहुमानपूर्ण श्रद्धाञ्जलि अर्पित करना है। किन्तु साहित्य-शास्त्र की विशेष परम्परा के अनुसार एक, दो या तीन श्लोक वाली श्रद्धाञ्जलि को 'स्तुति' और तीन से अधिक श्लोक वाली श्रद्धाञ्जलि को 'स्तव' कहा जाता है। कुछ लोग सात श्लोक तक श्रद्धाञ्जलि को भी स्तुति मानते हैं। १५ कालपडिलेहणयाए
श्रमण की दिनचर्या में काल-मर्यादा का बहुत बड़ा स्थान रहा है । दशवकालिक में कहा गया है-'वह सब काम ठीक समय पर करे।' यही बात सूत्रकृतांग में कही गई है । व्यवहार में बताया गया है-अस्वाध्याय में स्वाध्याय न किया जाये । काल-ज्ञान के प्राचीन साधनों में दिक्-प्रतिलेखन और 'नक्षत्र-अवलोकन' भी प्रमुख थे। मुनि स्वाध्याय से पूर्व काल की प्रतिलेखना करते थे। जिन्हें नक्षत्र-विद्या का कुशल ज्ञान होता था, वे इस कार्य के लिए नियुक्त होते थे । यांत्रिक घड़ियों के प्रभाव में इस कार्य को बहुत महत्त्व दिया जाता था। १६ मग्गं
शान्त्याचार्य ने मार्ग के तीन अर्थ किये हैं--१. सम्यक्त्व, २. सम्यक्त्व एवं ज्ञान पौर ३. मुक्ति-मार्ग।
मार्ग-फल का अर्थ 'ज्ञान' किया गया है । उत्तराध्ययन में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप---इन चारों को 'मार्ग' कहा गया है । प्रायश्चित्त के प्रकरण में मार्ग का अर्थ सम्यक्त्व मधिक उपयुक्त है । प्रायश्चित्त तपस्या-मय होता है, इसलिये तप उसका परिणाम नहीं हो सकता। चारित्र (प्राचार-शुद्धि) इसी सूत्र में पागे प्रतिपादित है । शेष ज्ञान और दर्शन (सम्यक्त्व) दो रहते हैं । उनमें दर्शन 'मार्ग' है और उसकी विशुद्धि से ज्ञान विशुद्ध होता है, इसलिये वह 'मार्ग-फल' है।
प्राचार्य वट्टकेर ने श्रद्धान (दर्शन) को प्रायश्चित्त का एक प्रकार माना है। वृत्तिकार वसुनन्दि ने उसके दो अर्थ किये हैं—१. तत्त्वरुचि का परिणाम और २. क्रोष प्रादि का परित्याग।
सूत्रकार का प्राशय यह है कि प्रायश्चित्त से दर्शन की विशिष्ट विशुद्धि होती है। इसलिए ज्ञान और दर्शन को प्रायश्चित्त भी माना जा सकता है और परिणाम भी। १७ खमावणयाए
सत्य की प्राप्ति उसी व्यक्ति को होती है, जो अभय होता है। भय के हेतु हैं
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