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________________ चौथे उपदृश्य में किसी राजा द्वारा शिकार करने का चित्रण किया गया है। हथियारों से युक्त सैनिक खडे हैं। पास में एक अनुचर एक राजकीय घोडे की लगाम पकड़े हुए खड़ा है। उसके आगे एक राजा सम्मवतः राजा खारवेल तीर और धनुष लिए खड़े हैं। आगे राजा कन्धे पर धनुष रखे हुए हैं अभय मुद्रा में दिखलाई पड़ रहे है। उसके आगे दो तीन भागते हुए हिरन और एक पेड की डाल पर बैठी हुई वस्त्र विहीन युवती है। वह युवती राजा की ओर हाथ उठये हुए रक्षा करने की याचना करती हुई प्रतीत होती है। सिंहपथ राजा की कुमारी खारवेल से रक्षा की याचना करती हुई उक्त दृश्यावली से.प्रतीत होता है कि सिंहपथ रजा की कुमारी ही राजा खारवेल को मिली हुई होगी, जिसे राजा ने छोटी रानी के रूप में स्वीकार किया है। इसी को हाथी गुम्फा शिलालेख की प्रन्द्रहवीं पंक्ति में सिंहपथरानी कहा गया है। सिंहपथ आज के आन्ध्रपदेश (श्रीकाकुलम जिल में स्थित ) का सिंगपुर होना चाहिए। आगे के दश्यों की आकृतियाँ नष्ट-भ्रष्ट हो गई हैं। कुछ महिलाओं के मध्य में उक्त युवती शुसज्जित हो कर बैठी हुई हैं। नृत्य और संगीत का आयोजन किया गया है। पति-पत्नि का युगल वैठ कर उक्त संगीत का आनन्द ले रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि राजा खारवेल ने छोटी सिंहपथ रानी के स्वागत में उक्त आयोजन किया है। छठे और सातवें उपखण्ड की चित्रावली पूर्ण रूप से नष्ट हो गई है। सातवें दृश्य अत्यधिक विकृत है। इसमें पुरुष और महिला (राजा और सिंहपथ रानी) के प्रणय संबंधी चित्रों को दो-तीन बार चित्रित किया गया है । Jain Education International ७४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003670
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherJoravarmal Sampatlal Bakliwal
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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