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________________ ऊपरी भाग में ढोलाकार तोरण और छत उत्कीर्णित है। द्वितीय उपखंड लगभग पूर्णरूप से प्रभावित है। उसमें उत्कीर्णित एक जानवर, सवार और तलवार के साथ आकृतियों की रूप-रेखा को बहुत कठिनाइ से समझा जा सकता हैं। तीसरे उपखण्ड में स्त्री के वक्षस्थल, और अनेक आकृतियों सिरों को जाना जा सकता है। कुछ सेवकों सहित जानवर पर सवारी किये हुए और छत्र धारण किये हुए एक और आकृति दृष्टि गोचर होती है। उक्त सेवको में से एक सेवक लाठी पर किसी वस्तु को लटकाये हुए है और घुड़सवार उसके सामने खडा है। चौथे दश्य में एक आदमी को तलवार लिए हुए और दो को एक हाथी पर चढते हुए दिखलाया गया है। पांचवें उपखंड में सात आकृतियाँ चित्रित की गईं हैं। उन में से एक राजकीय दृश्य है। उस में राजा को उनके दो अनुचरों सहित दिखलाया गया हैं। एक अनुचर छत्र पकडे हुए है और दूसरा वायें हाथ में तलवार लिए हुए है। दाहिनी ओर उत्कीर्णित चार चित्रों में से दो व्यक्ति हाथ जोडे हुए उस (राजा) के समक्ष झुके हुए हैं। मध्य में एक व्यक्ति अपने वायें हाथ को लटकाये हुए और दाहिने हाथ को अपने वक्षस्थल पर रखे हुए है। छठे दृश्य में एक व्यक्ति मध्य में स्थित दूसरे पर छत्र लगाये हुए है। सातवें उपखंड में पांच आकृतियाँ चित्रित हैं, उन में से एक हाथ जोडे खड़ा है और शेष चार तलवार पकड़े हुए हैं।" FISISHSE कालीज किसमि me TRAN AACARE PORA NAR TERREE : và B SAMANNAR M M inol A ENTRE । area मगध नरेश वृहस्पति मीत्र का राजा खारवेल का समक्ष आत्मसमर्पण ७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003670
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherJoravarmal Sampatlal Bakliwal
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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