SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ spiritual domination for several centuries with occasional setback Khandagiri Udayagiri stand today as silent witness to the rise growth and decline of Jain religious faith in Orissa." ई. सन् १९ वीं शताब्दी के अन्त में खंडगिरि की चोटी पर जैन मन्दिर दिगम्वर संप्रदाय के कटक निवासी मंजू चौधरी उनके भतीजे ने बनवा कर पुन: जैन धर्म के अनुष्ठान होने में योगदान दिया है। इस संबंध में विस्तार से चर्चा आगे करेगें । घ) महत्वपूर्ण जैन स्मारक : इस बात का उल्लेख किया जा चुका है कि जैन धर्म उड़ीसा का न कैवल प्राचीन धर्म था बल्कि ई. पू. दूसरी शताब्दी में इसे यहाँ का राजकीय धर्म होने का भी गौरव प्राप्त था । ६वीं शताब्दी से १२ वीं शताब्दी तक अर्थात् सोम वंशी राजाओं और गंगेय राजाओं के समय में जैनधर्म का उड़ीसा में चतुर्दिक विकास हुआ माना जाता है। अत: यहाँ जैन स्मारक बहुत बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। जैन स्मारक से तात्पर्य प्राचीन जैन मंदिर, तीर्थंकरों की मूर्तियां, मानस्तम्भ, गुंफाओं और स्तुप से है । हाथी गुम्फा शिलालेख के विश्लेषणात्मक चिन्तन कर हम ने देखा कि महापद्मनन्द राजा के समय में जैन मूर्तिकला का प्रारम्भ प्राचीन उड़ीसा में सर्व प्रथम हुआ था । कलिंग जिन की मूर्ति के निर्मित होने का " उदाहरण उक्त कथन का प्रमाण है । समय के साथ साथ सम्पूर्ण कलिंग में जैन मूर्तियों को पूजने की परम्परा का विकास हुआ प्रतीत होता है। इसके दो कारण हैं। पहला कारण है कि जैनधर्म मोक्ष मूलक है। मोक्ष हेतु साधना का साधन मंदिर और मूर्तियों को जैनधर्म में विशिष्ट मान्यता हुई है। दूसरा कारण मूर्ति कला के प्रति राग का होना है। आज उड़ीसा में जैन स्मारक चतुर्दिक व्याप्त हैं । उड़ीसा में जिन स्थानों पर खुदाई हुई है वहीं पर मंदिर और मूर्तियों के उपलब्ध होने से स्पष्ट है कि उड़ीसा जैन स्मारकों का केन्द्र है । उपलब्ध मूर्तियाँ ई.सन्. ७ वीं शताब्दी से लेकर १२ वीं और कहीं कहीं १४ वीं शताब्दी तक की उपलब्ध है। उपलब्ध मूर्तियों में से तीर्थंकर आदिनाथ, पार्श्वनाथ Jain Education International ४३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003670
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherJoravarmal Sampatlal Bakliwal
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy