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________________ अधिक संख्या निर्ग्रन्थों की थी। आर. पी. महापात्र ने कहा भी है: “However the observation of the Chinese pilgrim suggests that as late as middle of the 7th century AD Jainism was in flourishing condition in Orissa although Brahmanism had its sway in this region." उसने यह भी लेखा कि उड्र में ५०, कंगोद में १०० और कंलिंग में १०००० तीर्थंकर और देवों के मंदिर थे। बानपुर में प्राप्त ताम्रपात्र से ज्ञात होता है कि ई. सन्. ७-८वीं शताब्दी में कंगोद में जैन धर्मावलम्बि थे और शैलोदभव् वंशी राजा धर्मराज द्वितीय और रानी भगवती कल्याण देवी जैन धर्म की संरक्षिका और संवर्द्धिका थी। उन्हों ने जैन धर्म की वृद्धि के लिये आचार्य अर्हत नासीचन्द्र के शिष्य प्रवुद्ध चन्द्र त्यागी को भूमि दान में दी थी। खंडगिरि की गुफाओं में प्राप्त आलेखों और मूर्ति कला के प्रमाणों से ज्ञात होता है कि ई. सन १०-११ वी शताब्दी तक जैन धर्म उड़ीसा में सुदृढ़ स्थिति में होता रहा । इस समय सोमवंशी राजा का सम्पूर्ण उड़ीसा में राज्य था । यद्यपि उस समय शैव धर्म की प्रमुखता थी। सोमवंशी राजा यायति द्वितीय चन्दीहर महाशिव गुप्त के पुत्र और उत्तरधिकारी उद्योत केशरी सोमवंशी राजा के नवमुनि गुम्फा में दो और ललाटेन्दु में एक अभिलेख उत्कीर्णित हुए उपलब्ध है। नवमुनि गुम्फा के अभिलेख से ज्ञात होता है कि उद्योत राजाई. सन् १०४० - १०६५ के राजत्व काल के १८ वें वर्ष में श्री आर्यसंघ के ग्रहकुल तथा देशी गण के आचार्य कुलचन्द्र भट्टारक के शिष्य शुभचन्द्र कामर पर्वत पर आये थे। उस समय कुमार पर्वत पर कुछ प्रसिद्ध जैन छात्र रहते थे। मुनि शुभचन्द्र ने इस नव मुनि गुंफा का निर्माण कराया था। कहा भी है । ॐ श्री मदुद्योत केशरी देवस्य प्रवर्द्धमाने विजय राज्ये संवत् १८ श्री आर्य संघ प्रतिवद्ध गृहकुल विनिर्गत देशीगण आचार्य श्री कुलचंद्र भट्टारकस्य शिष्य सुभचंद्रस्य । ललाटेन्दु केशरी गुम्फा में निम्नांकित प्राप्त अभिलेख से ज्ञात होता है कि उद्योत केशरी ने अपने शासन के पांचवें वर्ष में कुमार पर्वत के जीर्ण मंदिरों और जीर्ण कुण्डों तालावों आदि की मरम्मत करवाई थी। इसके अतिरिक्त चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियों Jain Education International ४० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003670
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherJoravarmal Sampatlal Bakliwal
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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