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कलिंग का महान सम्राट खारवेल जैनधर्म का महान समर्थक, संप्रसारक, संरक्षक और संर्वधक होते हुए भी महान उदार, व्यवहार कुशल और समन्वयात्मक चिन्तक थे। उनके द्वारा जैन धर्म का आधार भूत सिद्धान्त अनेकान्तवाद और स्याद्वाद को आत्मसात करने का प्रमाण है हमारे समक्ष हाथी गुम्फा शिलालेख की १७वीं पंक्ति प्रस्तुत करती है। वहाँ स्पष्ट कहा गया है कि अपने उदारवादी और धर्म निरपेक्ष गुणों के कारण वे समस्त धर्मों अर्थात् अल्प संख्यकों का सम्मान करते थे और उनकी पूजा करते थे । इतना ही नहीं उन्होंने जैनेतर धर्मों के अधिष्ठानों मंदिरों आदि का जीर्णोद्धार कराया था। दूसरों के धर्म के प्रति समुचित सम्मान की भावना रखने के कारण कलिंग की जनता ने उन्हें खेम राजा, वध राजा, मिखु राजा और धर्म राजा की उपाधियों से सम्मानित किया था। धीरोदात्त गुणों के कारण ही जैनधर्म तत्कालीन कलिंगवासियों की स्वत: जैनधर्म के प्रति सुरुचि प्रगाढ़ होती गई। उसी कारण से जैनधर्म संपूर्ण कलिंग में व्याप्त हो कर राज धर्म के रूप में प्रतिष्ठित हो गया। प्राचीन काल के कलिंग का महान आकर्षक व्यक्तित्व और नैतिकता के शिखर पर प्रतिष्ठित खारवेल की महानता और धर्म निरपेक्षता का यह सुपरिणाम है कि आज अधिकांश प्राचीन स्मारक अर्थात् तीर्थंकरों और शासन देवियों की मूर्तियों को हिन्दू या ब्राह्मणीय मंदिरों में संस्थापित और सुरक्षित पाते है।
भगवान महावीर के पश्चात् यादि ई.पू. दूसरी शताब्दी में खारवेल नहीं हुआ होता तो भगवान् महावीर द्वारा बहाई गई जैनधर्म रूपी गंगा की धारा सदैव सदैव के लिए विलुत्प हो गई होती। यही कारण है कि उड़ीसा में जैनधर्म की चर्चा करने पर हमारा ध्यान खारवेल कालीन जैनधर्म की ओर बरवस चला जाता है । अतः यह कहना अनुचित नहीं होगा कि महान उदात्त खारवेल के कारण ही आज उड़ीसा में जैन धर्म अवतक अमर है।
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