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राजनीति में दक्षः
सम्राट् खारवेल एक कुशल, राजनीतिज्ञ, साहसी और प्रतापी राजा थे। ये अश्व सेना, गज सेना, रथ सेना और पैदल सेना रूपी विशाल सेना के दक्ष सेनापति थे। राजधर्म के निर्वाह (कर्तव्य पालन) और जैन धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अनेक संघर्ष रूप भयंकर युद्ध किये थे। १. राजा सातकर्णी पर आक्रमणः
अपने राजत्व के दूसरे वर्ष में उनकी दृष्टि तत्काल के सर्वशक्तिमान सातवाहन वंश के राजा सातकर्णी की ओर गई। खारवेल ने उनकी शक्ति की उपेक्षा करते हुए एक महान् सेना उस पर चढाई करने के लिए भेज दी। उस समय दोनों सेनाओं के बीच युद्ध होने का उल्लेख हाथी गुम्फा शिलालेख में नहीं हुआ है। वहाँ केवल यही कहा गया है कि उसकी सेना ने कृष्णावेणी नामक नदी को पारकर आसिक नगर (मूषिक) को नष्ट भ्रष्ट कर दिया था। कहा भी है “द्वितीय चवसे सातकनि अचियिता। कन्हवेनां गताय च सेनाय वितासिति असिक नगरं..."
उपर्युक्त विवरण के आधार पर निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि इस प्रथम आक्रमण के उद्देश्य और परिणाम निम्नांक्ति थे:
खारवेल का उद्देश्य अपनी विशाल सेना भेज कर जहाँ एक ओर सातकर्णी की शक्ति को चुनोती देना था वहीं दूसरी ओर अपनी अद्भुत शक्ति को प्रदर्शित करना भी था। इस युद्ध अभियान को न तो सफल कहा जा सकता है और न असफल। क्योंकि युद्ध हुआ ही नहीं। सातकर्णी को पराजित करना इस अभियान का
उददेश्य नहीं था। ३. सम्भवत: मूषिक नगर पर कब्जा करना ही इस युद्ध का उद्देश्य रहा होगा।
मषिक नगर सातकर्णी राजा के किसी मित्र राजा की राजधानी रही होगी. जिसका राजनैतिक और सामरिक दृष्टि से महत्व रहा होगा। यही कारण है कि इस महत्त्वपूर्ण मूषिक नगर को अपने कब्जे में कर के खारवेल की सेना को संतोष करना पड़ा था।
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