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________________ बनवाये थे। राजा बनने के सातवें वर्ष में वजिर रानी से उन्हें एक पुत्ररत्न की प्रप्ति हुई थी। कहा भी है: “सतमं च वसे पसायतो वजिर धरवति .... समतुक पद (पुनां) स (कुमार)...।" हाथी गुम्फा शिलालेख पंक्ति-७। ___मंचपुरी गुफा में उनके राजकुमार का नाम कुदेपश्री बतलाया गया है। कहा भी है:“ऐरस महाराजस कलिंगाधिपतिनों महामेघवाहनस कुदेपसिरिनों लेणं।” अत: कहा जा सकता है कि खारवेल की दो रानियाँ और एक राजकुमार था। आकर्षक व्यक्तित्व: राजा खारवेल एक महान् व्यक्तित्व के धनी थे। वे अपने समय के दमकते हुए सूर्य और नरोत्तमथे। हाथीगुम्फा शिलालेख से यह भी ज्ञात होता है कि अपने समकालिक महान् व्यवितयों में उनकी गणना एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में की जाती थी। उनकी नैतिकता इतनी ऊँची थी कि जिसे कोई राजा नहीं जान सका। वे एक महान् प्रतापी, शक्तिशाली और अविजेय योद्धा थे। भेद नीति को कुत्सित नीति मानने वाले तथा शाम, दंड तथा संधि नीति में कुशल राजा थे। उक्त शिलालेख की १६ वीं और १७ वीं पंक्ति में उन्हें क्षमाशील राजा, भिक्षु राजा, वर्धमान राजा, धर्मराजा, विशेष गुणों में निपुण, समस्त धर्मो को सम्मान (पूजक) समस्त मंदिरों का जीर्णोद्धारक तथा सजाने वाले, अपराजित सेना के सेनापति, विजयचक्र के प्रवर्तक, राज्य के संरक्षक, राजर्षि, राजवंशों और कुल के आश्रयभूत महान् विजयी और मनोरंजन प्रिय राजा कहा गया है। वे सच्चे निष्ठावान श्रावक (उपासक) थे। कहा भी है: “राजभितिनं चिनवतानं वासासितानं पूजानुरत उपासग खारवेल सिरिना।” पंक्ति १४ । वे धर्मशील भिक्षु अर्थात् जैन मुनिथे। अणु व्रती वर्षावास करने वालों की पूजा करने वाले उपाशक थे। नवीन कुमार साहु ने अपनी अंग्रिजी कृति खारवेल के (पू.८६) में का भी है: “It is significant that the inscription while presinting these accounts describes Kharvela as a yati Jaina monk." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003670
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherJoravarmal Sampatlal Bakliwal
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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