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महामेघवाहन नामक किसी प्रभावकारी और प्रतापी व्यक्ति ने चेदि शासन की प्रतिष्ठा की हो। अत: खारवेल का अपने आपको चेदिवंश का कहना उचित ही है। खारवेल का पूरा नाम ऐरेण महाराजेन महामेघवाहनेन चेतराज। अर्थात् आर्य महाराज महामेघवाहन कलिंगपति श्री खारवेल था। इस कथन से सिद्ध होता है कि खारवेल आर्य जाति में उत्पन्न क्षत्रिय थे। महामेघवाहन एक उपाधि भी है। जैसे शातवाहन, धधिवाहन, नरवाहन आदि। महामेघवाहन शब्द का अर्थ इन्द्र है। अत: जो इन्द्र के समान शक्तिशाली थे ऐसे महाराज खारवेल। - यहाँ ध्यातव्य है कि खारवेल ने अपने आपको चेदिवंश की तीसरी पीढी का राजा कहा है। इस कथन से सिद्ध होता है कि महाराजा मेघवाहन खारवेल के दादा और चेदराज इनके पिता थे। शिलालेख में इनकी जननी और जन्म भूमि का उल्लेख नहीं हुआ है। फिर भी उनकी जन्म भूमि तोषाली (धौलिगिरि) के निकट शिशुपाल गढ़ रही होगी। इसका प्रमाण वहाँ खोदाई करने पर किले का प्राप्त होना हैं।
खारवेल इस शब्द का अर्थ क्षार अर्थात् खारा और वेल का अर्थ किनारा या उपवन करके के. पी. जायसवाल ने कहा है कि वे भयानक और काले रंग के थे। उनका जन्म समुद्र के किनारे हुआ था। भाषा विज्ञान के प्रसिद्ध विद्वान सुनीति कुमार चटर्जी ने खारवेल शब्द को द्रविण शब्द माना है और इसका अर्थ काला बतलाकर कहा है कि वे कृष्ण अर्थात् काले रंग के शरीर वाले थे।
लेकिन उक्त दोनों कथन ठीक नहीं हैं। क्योकि चटर्जी का मत हाथी गुम्फा शिलालेख से भिन्न और विरुद्ध जान पडता है। उक्त शिलालेख में उन्हें सीरि कडार सरीरवता अर्थात् सुन्दर और पिंगल अर्थात लालिमा संयुक्त भूरी रंग (अत्यधिक गौरवर्ण) के सौम्य और सुन्दर शरीर वाला कहा गया है। उक्त कथन से स्पष्ट है कि वे काले और भयानक नहीं थे। उनका शरीर शुभ लक्षणों से सुशोभित था। वे यशस्वी थे। उसके पराक्रम आदि गुण चतुर्दिकों में व्याप्त थे। कहाभि है : पसथ सुभलखलेन चतुरंत लुठ(न) गुणे उपेनेत कलिंगाधिपतिनासिरि खालवेन।
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