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________________ श्लोक) से ज्ञात होता है कि विन्ध्याचल के समीपवर्ती क्षेत्र में चेदिराष्ट्र की स्थापना अभिचन्द्र राजा ने की थी। यथा: विन्ध्य पृष्ठेऽभिचन्द्रेण चेदिराष्ट्रमाधिष्ठितम्। शुक्तिमत्यास्तटे ऽध्यायि नाम्ना सुक्तिमतीपुरी।। उक्त श्लोक से अभिव्यक्त होता है कि चेदी देश की स्थापना सुक्ति नदी के किनारे पर हुई थी और उत देश की राजधानी की नाम सुक्तिमती पुरी था। अब प्रश्न होता है कि उक्त सुक्तिमती नदी आज कहाँ है ? एन्.के.साहु ने पार्जिटर के मत का प्रस्तुत करते हुए मध्य प्रदेश में बहनेवाली केन नदी को ही सुक्तिमती कहा है। उन के कथनानुसार यमुना नदी के दक्षिण में चम्बल और करवी के बीचोंबीच फैला हुआ मैदान था। यदि यह कथन सत्य मानलिया जाए तो मेरे मत की पुष्टि हो जाती है, कि बुन्देलखण्ड के वर्तमान चन्देरी में ही चेदिवंशवाले रहते थे। उनकी एक शाखा कभी उड़ीसा के आस-पास आकर बस गई होगी। इसी शाखा.के प्रभावशाली व्यक्ति तत्कालीन प्राचीन उड़ीसा के राज्य पद पर आसीन हुआ होगा। इसी व्यक्ति ने अवसर पाकर अपने को तत्कालिन कलिंग का राजा घोषित कर दिया होगा। डॉ.शशिकान्त जैन और डॉ.राजाराम जैन का भी यही मत है। एन्.के.साहु ने खारवेल की वंश की (खारवेल पृ.१८-३१) विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने बलाङ्गीर में बहने वाली शुकतेल नदी को सुक्तिमती नदी मानकर चेदि राज्य कलिंग के आसपास मानकर कहा है कि महामेघवाहन ने कलिंग में चेदि राज्य की स्थापना कर वह प्रथम राजा हुआ। कहा भी है: “Both Vimalsuri and Dhanapala describe Meghavahana as a powerful and adventurous king according to Vimalsuri he got possession of the territory of Lanka where he established the rule of Vidyadhara family. Dhanapala states that king Meghavahana acquired mastery over aparajita Vidha (The becoming invincible) and satisfying Rajalaxmi obtained royal glory. This seems to be a veiled reference to his extension of royal authority over Kalinga, which was great achievement." उक्त उद्धरण से स्पष्ट हो जाता है कि चेदि वंश के क्षत्रिय राजा महामेघवाहन कलिंग के प्रथम शक्तिशाली राजा हुए थे। दूसरे शब्दों में मेघवाहन ने कलिंग में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003670
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherJoravarmal Sampatlal Bakliwal
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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