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________________ he Jain Harivansa Purana records that Mahavir preached his religion in Kalinga. इसी प्रकार आवश्यक नियुक्ति (पृ-५०२-५२०) में मुनिदीक्षा लेने के ग्यारहवें वर्ष में दो बार महावीर का तोषाली में विहार करने का उल्लेख हुआ है। उक्त उल्लेखानुसार दोनों वार उन्हें भयानक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा था। एक वार उन्हें डाकु भी अपहरण कर ले गये थे और उन्हें विषम यातनायें दी थीं। दूसरी बार उन्हें फांसी पर लटका दिया गया था। तत्कालीन तोषाली के किसी क्षत्रिय के यथा समय हस्तक्षेप करने से उन्हें बचाया गया था। लेकिन दिगम्बर साहित्य में इस प्रकार का उल्लेख नहीं है। व्यवहार भास्य (६/११५) में आये सन्दर्भ से सिद्ध होता है कि भगवान् महावीर ने तोषाली में विहार किया था। आवश्यक सूत्र(पृ२१९-२२०) में महावीर के कलिंग में विहार करने का स्पष्ट उल्लेख उपलब्ध है। कल्पसूत्र में भगवान् महावीर के चातुर्मास संपन्न करने वाले स्थानों की सूची दी है। उससे ज्ञात होता है कि उन्होंने पनित भूमि में भी चातुर्मास किया था। विद्वानों ने पनित भूमि को पणीय भूमि का दूसरा नाम माना है। पणीय भूमि फणीय भूमि या यह नागलोक ही प्रतीत होती है। यह नागलोक वर्तमान कालीन नागपुर ही प्रतीत होता है। प्राचीन काल में इसे भोगपुर भी कहते थे। भोगपुर को आजकल मध्य प्रदेश का बस्तर और उडीसा का कलाहांडी क्षेत्र के रूप में पहिचाना गया है। भगवतिसूत्र में कहा गया है कि भगवान् महावीर ने अपने धर्म का उपदेश सर्वप्रथम राजगिरि नालन्दा, पणीय भूमि, कूर्म ग्राम, और सिद्धार्थ ग्राम में दिया था। भगवतीसूत्र में यह भी कहा गया है कि पणीय भूमि से जब भगवान् महावीर उपदेश देने के लिए कूर्म ग्राम और सिद्धार्थ ग्राम की ओर उसी रास्ते से गयेथे, जिस रास्ते से समुद्र गुप्त ने कलिंग के लिए प्रस्थान किया था। कूर्म ग्राम और सिद्धार्थ ग्राम प्राचीन कलिंग देश के शहर थे। भगवान् महावीर के पिता के सम्मान में सिद्धार्थ ग्राम का नामकरण किया गया होगा। इसी प्रकार बालेश्वर जिले में एक ग्राम का नाम वर्धनपुर या वर्धमानपुर भगवान् महावीर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए और स्मरणोत्सव मनाने के वास्ते कलिंग के तत्कालीन राजा मथिर ने भगवान् महावीर के समय में किया होगा। श्री कुर्मम्भृ और प्राचीन कूर्म ग्राम के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003670
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherJoravarmal Sampatlal Bakliwal
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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