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एक विख्यात, लब्धप्रतिष्ठ तीर्थंकर थे जब कि अंतिम या २४ वे तीर्थंकर महावीर देश के धार्मिक आकाश के रूप में प्रतीत होते हैं । नन्द राजा का कलिंग देश की विजय वस्तु के रूप में कलिंग जिन की मूर्ति को मगध ले जाना उक्त मूर्ति की महानता को प्रकट करता है। आदिपुराण के उक्त उदाहरण से आर. पी महापात्र आदि विद्वानों की यह मान्यता निराकृत हो जाती है कि उडीसा में त्र - षभदेव के विहार का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता है ।
कलिंग देश से संबंधित दूसरा सन्दर्भ जैन साहित्य में ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का उपलब्ध होता है । गुणभद्र कृत उत्तर पुराण हरिवंश पुराण आदि के अनुसार श्रेयांसनाथ का जन्म सिंहपुर में हुआ था। आवश्यक निर्युक्ति में भी यही कहा गया है। उस समय सिंहपुर कलिंग देशकी की राजधानी थी। इसी प्रकार अठारहवें तीर्थंकर अरहनाथ का संबंध भी कलिंग देश में होने का प्रसंग भी प्राप्त होता है। पी. सी राय द्वारा अनुवादित महाभारत के शान्तिपर्व (पृ. ४,८) के अनुसार तत्कालीन कलिंग देश की राजधानी राजपुर नगर में अरहनाथ को प्रथम आहारदान प्राप्त हुआ था ।
तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के संबंध में भी कहा गया है कि उन्होंने कलिंग देश में विहार किया था और धर्मोपदेश भी दिया था ।
इस के अलावा भुवनेश्वर के समीप उदयगिरि खंडगिरि की गुफाओं में बहुत बडी संख्या में प्राप्त पार्श्वनाथ की मूर्तियाँ और गणेश गुफामें चित्रित उनके जीवन से संबंधित घटना प्रमाणित करती हैं कि उत्क तीर्थंकर ने कलिंग को अपने चरणों से पवित्र किया था | उडीसा के लगभग सभी स्थानों पर यथा बालेश्वर, भानपुर, चरम्पा आदि स्थानों पर बड़ी मात्रा में पार्श्वनाथ तीर्थंकर की मूर्तियों का उपलबध होना सिद्ध करता है कि उक्त तीर्थंकर प्राचीन कलिंग के परम पूजनीय, अर्चनीय और सम्मानीय रूप में विख्यात थे। तीर्थंकरों की परम्परा में हुए महान् व्यक्तित्व वाले पार्श्वनाथ भगवान् महावीर
जन्म के २५० वर्ष पूर्व निर्वाण को प्राप्त हुए थे । ई.पू. ८वीं शताब्दी में उडीसा जैन धर्म का विख्यात केन्द्र था। जैन धर्म को मनुष्यों के मध्य प्रचार प्रसार करने में पार्श्वनाथ महत्वपूर्ण योगदान दिया था ।
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