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________________ अष्ट प्रातिहार्य ५. १. अशोक वृक्ष, २ . तीन छत्र, ३. रत्न खचित सिंहासन ४. भक्तियुक्त गण, दुन्दुभिनाद, ६. पुष्पवृष्टि, ७. प्रभामंडल, और ८. चौसठ चमरयुक्तता उत्कीर्णित है। अठ मंगल द्रव्य और अष्ठ प्रतिहार के बीच में गाय और शेर विरुद्ध स्वभाव वाले एक साथ एक नॉद में खाते हुए उत्कीर्णित हैं, जो अंहिसा के प्रतीक हैं। मंदिर में अखंड ज्योति भी प्रज्वलित होती रहती है। महावीर जयन्ति, महावीर निर्वाण दिवस, दशलक्षणी पर्व (पर्युषण पर्व) आदि जैन पर्वों के सुअवसरों पर समस्त जैन समाज मिलकर धर्म प्रवाहना करती है । : मानस्तम्भ : मंदिर के सम्मुख एक मानस्तम्भ है। इसका निर्माण २००३ में हुआ था। इसके चारों ओर शान्तिनाथ भगवान् की चारमूर्तियां स्थापित हैं। धर्मशाला : जैन तीर्थ क्षेत्र समिति ने तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए दो मंजिला धर्मशाला का निर्माण किया गया है। इस में २४ कमरे हैं। प्रकोष्ठों के सामने चौड़ा बरामदा है। धर्मशाला में सम्राट खारवेल शुद्ध जैन भोजनालय की व्यवस्था एवं पानी की व्यवस्था सन २००३ से प्रारम्भ हुई है। जैन यात्रियों को शुद्ध शाकाहारी भोजन शुल्क देने पर उपलब्ध हो सकता है । खारवेल दातव्य औषधालय: धर्मशाला में न केवल यात्रियों की सुविधा के लिए, बल्कि सभी लोगों के लिए एक होमिओ पैथिक खारवेल औषधालय की स्थापना भी हुई है। इस औषधालय में निःशुल्क दवा दी जाती है। Jain Education International १३० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003670
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherJoravarmal Sampatlal Bakliwal
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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