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उपलब्ध नहीं है। चूंकि इस में उत्कीर्णित तीर्थंकरों में अंतिम तीर्थंकर महावीर का धर्म शासन चलरहा है और उनका धर्म चक्र प्रर्वतन भी यहाँ हुआ था, इसलिए इसे महावीर गुम्फा कहना सार्थक है। टी.एन. रामचन्द्र और बाबू
छोटेलाल जैन की मान्यता है कि इस महावीर गुफा में संभवनाथ और अभिनन्दननाथ गुम्फा के बरामदे में एक अर्ध निर्मित त्रिशूल की आकृतिक्किारण इसका नामकरण त्रिशूल गुम्फा हुआ है। दिनी इस गुम्फा के अन्दर एक बृहद प्रकोष्ठ है। इस प्रकोष्ठ के सामने एक बरामदा है। कमरे की छत सामान्यत: समतल है। फर्श पीछे से उठा हुआ है। फर्श खुद गया था, बाद में नवीनी करण किया गया है। सामने की मूल दीवाल प्रारम्भ में दरवाजे सहित खंडित हो गई थी। अब उसे कँक्रीट से मरम्मत कर बदल दिया गया है, लेकिन इसका स्तम्भ मूल रूप में है।
महावीर गुफा में शीतलनाथ तीर्थंकर
कमरे के तीन ओर पंक्तिबद्ध चौबीस तीर्थकरों की दिगम्बर मूर्तियाँ उत्कीर्णित हैं। पूरातत्त्व-वेत्ताओं ने इस गुंफा की मूर्तियों को बारहभूजी की मूर्तियों
की अपेक्षा अर्वाचीन माना है। उनकी POST
यह मान्यता है कि कला की दृष्टि से
इस गुम्फा की मूर्तियाँ ई.सन्. १५ वीं सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ और अनन्तनाथ तीर्थंकर शदी के पहले की नहीं हैं।
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