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२. बाई ओर के कमरे के पीछे की। की दीवाल पर किसी तीर्थकर की मूर्ति
उत्कीर्णित है। यह मूर्ति पर्यकांसन
और योगमुद्रा में विराजमान हैं। लेकिन इस में कोई चिन्ह न होने के कारण इन्हों पहिचानना संभव नहीं है। मूर्ति के देखने से ज्ञात होता है कि इसे चूना पत्थर के आवरण के साथ प्लास्टर कर जोड़ दिया गया है।
इसी प्रकार बायीं ओर की कोठी ध्यानस्थ जैन तीर्थंकर में गणेश की मूर्ति उत्कीर्णित है। इस मूर्ति की दाहिनी ओर पांच पंक्ति के एक आलेख से प्रकट होता है कि भौम वंश के राजा शांतिदेव के राजत्व
काल में विरजा के निवासी वैद्य भीमट्ट के पुत्र नन्नट ने प्रसस्त धान दी थी। शांतिदेव के राजत्व का समय ई.सन्. ८२९ है। अत: अनुमान किया जाता है कि उक्त गणेश की स्थापना ई.सन्. ८२९ के आस पास हुई होगी। इसी गणेश की मूर्ति स्थापित होने के कारण यह गुंफा गणेश मंफा कहलाती है। कमरो
के प्रवेश द्वारो की ऊपर तोरण पर वनस्पति के चिन्ह और मकर के मुख से निकलने बाली लताओं से सुसज्जित है। ऊपरी भागों पर नन्दिपाद और श्रीवत्स भी दृष्टि गोचर होते हैं। एक ओर पहले ओर दूसरे द्वारपथ के बीच के और दूसरे और तीसरे और चौथे द्वारपथ के वीच के स्थान में दो दृश्य उत्कीर्णित है। प्रत्येक के उपर घेरा बना हुआ है। उसी में पालथी लगाकर बैठे हुए तीन तोंदवाले स्त्री पूरूष की
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