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जैन धर्म और जीवन मूल्य
प्राप्तमीमांसा, कारिका, 89.91 । 7. कालो सहाव रिणयइ पुव्वकम्म पुरिसकारणेगंता ।
मिच्छतं तं चैव उ समासत्वो हुति सम्मतं ।।- सन्मतितर्कप्रकरण 3-53 8. भगवती, 7-3-35 9. ज्ञाताधर्मकथा, 1-13 10. शास्त्री, देवेन्द्रमुनि, महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ, पृ. 53 11. जैन, जगदीशचन्द्र, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ. 94-95 12. द्रष्टव्य, तरगंलोला की कथा । 13. वसुदेवहिडी पृ. 31 14. शास्त्री, नेमीचन्द्र, हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक
परिशीलन, पृ. 212 15. जह वा लुणाइ सासाइ कासग्रो परिणयाइ कालेण ।
इय भयाइ कयन्तो लुगाइ जायइ जायाइ।। 2-223 उपदेशपद, गाथा 353-356। द्रष्टव्य, लेखक का ग्रन्थ-'कुवलयमालाकथा का सांस्कृतिक अध्ययन," वैशाली 1915 महवा न दायव्वा दोसो कस्सवि केण कइयावि । पुव्वज्जिय कम्मानो हवंति जं सुक्खं दुक्खाई। सुकुमालसामीचरिउ-पं. श्रीधर । पप्रोगवीससापरिणया वि य णं सामी! पोग्गला पण्णत्ता ।-ज्ञाता. 1-12
ज्ञाताधर्म कथा 1-13 22. जैन, जगदीशचन्द्र, 'दो हजार वर्ष पुरानी कहानियां, पृ. 75
दशवकालिकचूर्णी पृ. 103-104 वसुदेवहिंडी, पृ. 145
द्रष्टव्य, शास्त्री, वही, तृतीय प्रकरण । 26. जइ घडियं विहडिज्जइ घडियं घडियं पुणो वि विहडेइ ।
ता घडण-विहाडणाहिं होहिइ विहडफ्फडो दव्वो ॥ -कुव. 66-31 27. जैन, राजाराम, पाइयगज्जसंगहो (वीयोभामो) पृ. 34-35
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