SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म और जीवन-मूल्य करने के लिए व्यक्ति का पुरुषार्थी होना श्रप्रमादी होना, बहुत आवश्यक है । इसी से जैन दर्शन में तप आदि की प्रधानता है । श्रप्रमाद की प्रतिष्ठा है । यथा- "विहणाहि रयं पुरे कड, समयं गोयम ! मा पमायए-' (उत्तरा 10/3) 72 सम्बन्धी चिन्तन का प्रत्येक प्राकृत लिए संयम वैराग्य प्रादि जैन आगम साहित्य में प्रतिपादित कर्म और पुरुषार्थ प्रभाव प्राकृत कथाओं में भी देखने को मिलता है । वैसे तो कथा में पूर्वजन्म, कर्मों का फल तथा मुक्ति प्राप्ति के पुरुषार्थों का संकेत मिलता है । किन्तु कुछ कथाएं ऐसी भी हैं जो कर्म- सिद्धांत का ही प्रतिपादन करती हैं तो कुछ पुरुषार्थं का। भारतीय संस्कृति में चार पुरुषार्थां का विवेचन है- धर्म, अथ काम एवं मोक्ष । वस्तुतः प्राकृत कथाओं में इनमें से दो को ही पुरुषार्थ माना गया है, काम और मोक्ष को । शेष दो पुरुषार्थ इनकी प्राप्ति में सहायक हैं। धर्म पुरुषार्थं से मोक्ष सधता है तो अर्थ से काम पुरुषार्थ । अर्थात् लौकिक समृद्धि व सुख आदि । प्राकृत कथाओं में इन लौकिक और पारलौकिक दोनों पुरुषार्थों का वर्णन है, किन्तु उनका प्रभाव समाज पर भिन्न-भिन्न पड़ा है । "" प्राकृत कथाओं में कर्म सिद्धान्त को प्रतिपादित करने वाली कथाएं ज्ञाताधर्मकथा में उपलब्ध हैं । मणिकुमार सेठ की कथा में कहा गया है कि पहले उसने एक सुन्दर वापी का निर्माण कराया । परोपकार एवं दानशीलता के अनेक कार्य किये। किन्तु एक बार जब उसके शरीर में मोलह प्रकार की व्याधियाँ हो गयीं तो देश के प्रख्यात वैद्यों की चिकित्सा द्वारा भी मणिकुमार स्वस्थ नहीं हो सका । क्योंकि उसके श्रासता कर्मों का उदय था, इसलिए उसे रोगों का दुख भोगना ही था । इसी ग्रन्थ में काली आर्या की एक कथा है, जिसमें अशुभ कर्मों के उदय के कारण उसकी दुष्प्रवृत्ति में बुद्धि लग जाती है और वह साध्वी के प्राचरण में शिथिल हो जाती है । 0 प्रायः श्रागम ग्रन्थों में विपाकसूत्र कर्म सिद्धान्त के प्रतिपादन का प्रतिनिधि ग्रन्थ है । इसमें 20 कथाएं हैं । प्रारम्भ की दस कथाएं अशुभ कर्मों के विपाक को एवं अंतिम दस कथाएं शुभ कर्मों के फल को प्रगट करती हैं । 11 मियापुत्त की कथा क्रूरता पूर्वक आचरण करने के फल को व्यक्त करती है तो सोरियदत्त की कथा मांसभक्षण के परिणाम को । इसी तरह की अन्य कथाएं विभिन्न कर्मों के परिपाक को स्पष्ट करती हैं। इन कथाओं का स्पष्ट उद्देश्य प्रतीत होता है कि लोग अशुभ कर्मों को छोड़कर शुभ कर्मों को ओर प्रवृत्त हों । Jain Education International स्वतन्त्र प्राकृत कथा-ग्रन्थों में कर्मवाद की अनेक कथाएं हैं। तरंगवती में पूर्वजन्मों की कथा है। तरंगवती को कर्मों के कारण पति वियोग सहना पड़ता है 112 वसुदेवहिण्डी में तो कर्मफल के अनेक प्रसंग हैं । चारूदत्त की दरिद्रता उसके पूर्वकृत कर्मों का फल मानी जाती है। इस ग्रन्थ में वसुभूति दरिद्र ब्राह्मण की कथा होनहार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003669
Book TitleJain Dharm aur Jivan Mulya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1990
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy