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जैन धर्म और जीवन-मूल्य
15.
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भार्गव, दयानन्द : जैन एथिक्स, पृ. 37-38
उत्तराध्ययन सूत्र : प्र. 2, गा. 37 10. ग्लेसनेप, एच. : डाक्ट्राइन ऑफ कर्म इन जैन फिलॉसफी, बम्बई, 1942 11. श्वेताश्वतरोपनिषद् : 1.12 12. मुनि नथमल : जैन दर्शन : मनन और मीमांसा, चुरू 1977, पृ. 320
जेम्स, हेस्टिग्स, (सं) : एन्साइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन एण्ड एथिक्स,
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जैन, महेन्द्र कुमार, : जैन दर्शन, वाराणसी 16. उपाध्ये, ए. एन. (स) : परमात्मप्रकाश, बम्बई, भूमिका, पृ. 36 17. कार्तिकेयानुप्रक्षा : बम्बई, गा. 193-198 18. तत्त्वार्थसूत्र : 1.1 19. सर्वार्थसिद्धि (पूज्यपाद) : सं.-पं. फूलचन्द्र शास्त्री, वाराणसी, 1971,
पैरा 5 10. सोगाणी, के. सी. : महावीर प्रॉन इन्डिविजुअल एण्ड हिज सोशल
रिस्पांसिबिलिटी, (निबन्ध)। मालवणिया, दलसुख : आगम युग का जैन दर्शन, आगरा, 1966, पृ, 129 तत्थ पचविहं नारणं सुय प्राभिनिबोहियं । प्रोहिनाणं तु तइयं मणनाणं च केवल ।। -उत्तराध्ययनसत्र, 28.4 मुखर्जी, सतकारी : द जैन फिलॉसफी ग्राफ नॉन एब्सोल्युटिज्म, दिल्ली, वि. सं. 1978 शास्त्री, देवेन्द्र मुनि : जैन प्राचार सिद्धान्त और स्वरूप, उदयपुर 1982,
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पुष्कर मुनि : श्रावक धर्म-दर्शन, उदयपुर, 1978, पृ, 383 प्रादि जैन, स गरमल : जैन, बौद्ध और गीता का समाज-दर्शन, जयपुर, 1982, पृ. 51 सव्वे पारणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सम्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण प्रज्जावेयव्वा,
रण परिघेतवा, ण परिरतावेयव्वा, रण उद्दवेयन्वा । - प्राचारांगसूत्र 1.4.1 29. सूत्रकृतांगसूत्र : 1.4.10 30 प्रश्नव्याकरणसत्र : 2.1 21-22 31. भगवतीप्राराधना : गा. 790
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