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________________ जैन धर्म और जीवन-मूल्य भगवान् महावीर इतिहास का एक ऐसा व्यक्तित्व है, जिससे दार्शनिक, धार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र निरन्तर प्रभावित होते रहे हैं। न केवल भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में महावीर का व्यापक प्रभाव है, अपितु भारतीय शिल्प में भी महावीर के जीवन-दर्शन की अनेक छवियां अंकित हैं । महावीर ने भगवान् पार्श्वनाथ के चिन्तन को तो नया स्वर दिया ही, अपनी मौलिक उद्भावनाएं भो स्थापित की हैं। उन्होंने जीवन के समग्र विकास के लिए समाज को एक नयी आचार संहिता दी । वर्ण और जाति की आधारभूमि पर टिकी परम्परागत समाजसंरचना को तोड़ा । व्यक्ति के स्वत्त्व की प्रतिष्ठा की और इकाई के महत्त्व को समझाया | महावीर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि आत्मा के विकास में किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं है 22 एगे चरेज्ज धम्म । प्रश्नव्याकरण २:३ आत्मनिर्भरता का यह चिन्तन महावीर द्वारा धार्मिक क्षेत्र से समाज तक व्याप्त हुआ । महावीर ने कहा-समाज में परिवर्तन लाने के लिए व्यक्ति को बदलना होगा । सामाजिक जीवन में विषमता तब तक रहेगी जब तक व्यक्ति पग-पग पर दूसरे के सहारे की अपेक्षा करेगा । श्रतः महावीर ने कहा व्यक्ति स्वयं मर्यादित हो । उसकी मर्यादा के लिए महावीर ने पांच व्रतों की व्याख्या दी । अहिंसा के पालन द्वारा बह वात्सल्य एवं समभाव का प्रसार करे । सत्य द्वारा वह वाणी के प्रयोग में स्वयं मर्यादित हो तथा समस्या की सचाई तक पहुँचकर समाधान खोजे । प्रचौर्य का पालन उसे भय से मुक्ति दिलाता है तथा लोभ संवरण सिखाता है । ब्रह्मचर्य व्रत के पालन द्वारा वह स्त्री के स्वातन्त्र्य की रक्षा करता है । स्वय वासनात्रों से मुक होता है । तथा अपरिग्रह व्रत के पालन द्वारा व्यक्ति संग्रह की वृत्ति से बचता है । स्वयं को असुरक्षा से निकालकर निर्भयी बनाता है बहपि लद्ध न निहे, परिग्गहाश्री प्रवारणं श्रवसविकज्जा । - श्राचा. ११२१५ सामाजिक क्षेत्र में भगवान् महावीर का महत्त्वपूर्ण योगदान है - व्यक्ति को ऊंच-नीच के दायरे से बाहर निकालना। उन्होंने कभी भी जन्म को महत्व नहीं दिया । व्यक्ति के गुणों को सराहा, चाहे वह किसी भी जाति, वर्ण का क्यों न हो । यही कारण है कि उन्होंने अपने जीवन का प्रारम्भ प्रतिष्ठान को ठुकराकर झोपड़ियों से प्रारम्भ किया । लोगों को अनासक्त, समभावी और संविभागी बनाने के पूर्व वे स्वयं सर्वहारा हो गये । अपनी बात उन्होंने उस भाषा में कहना प्रारम्भ की जो सामान्य जन की भाषा थी । व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने वाली । समाज के प्रति महावीर के इसी दृष्टिकोण ने तत्कालीन सामन्तीवातावरण को लोकतंत्र में बदल - दिया । राजनीति की परिभाषाएं एवं शासन व्यवस्था अहिंसा प्रधान विचारधारा से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003669
Book TitleJain Dharm aur Jivan Mulya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1990
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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