________________
108
जैन धर्म और जीवन-मूल्य
काव्य, पार्श्वनाथ स्त्रोत, भावनाचतुविशंति आदि महत्त्वपूर्ण रचनाएं लिखी हैं। सकलकोति54.--- महाराणा कुम्भा के समय मेवाड़ में बागड़ भी जैनधर्म का प्रमुख केन्द्र था । वहाँ सागवाड़ा साहित्य का केन्द्र था। 15 वीं शताब्दी में भट्टारक सकलकीति ने यहाँ पर प्रादि पुराण की रचना की थी। सं. 1492 में भट्टारक सकलकीति ने डूगरपुर में अपनी गद्दी स्थापित की थी। सकलकीति संस्कृत, राजस्थानी एवं गुजराती के समर्थ कवि हैं। इनकी कई रचनाएं राजस्थान में प्राप्त हुई हैं । यथा-प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, पार्श्वपुराण, सुकुमालचरित, मूलाचार प्रदीप, आदिपुराण इत्यादि । इन्होंने अपने 'सीखामणि रास' में बड़े सुन्दर पद्य कहे हैं । यथा
जीव दया दढ़ पालीइए मन कोमल कीजि ।
प्राप सरीखा जीव सवै मनमाहि धरीजइ ।। भट्टारक शुभचन्द्र56.---चित्तौड़ में भट्टारक शुभचन्द्र की विशेष ख्याति रही है। ये महाराणा कुम्भा के समकालीन थे। इनके समय में चित्तौड़ में साहित्य की अच्छी सेवा हुई है। शुभचन्द्र को 'त्रिविध-विद्याधर' एवं 'षट्भाषा कवि चक्रवर्ती' उपाधियों से अलंकृत किया गया था। इन्होंने संस्कृत एवं प्राचीन हिन्दी भाषा की लगभग 30 रचनाएं लिखी हैं । चन्द्रप्रभचरित, इनके प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। उन्होंने पाण्डव पुराण सागवाड़ा में लिखा था । सं. 1494 में इन्होंने भाबू पर एक प्रतिष्ठा भी करायी थी। भट्टारक भुवनकोति57- ये 19 वर्ष तक डुगरपुर में रहकर जैनधर्म की सेवा करते रहे । 15 वीं शताब्दी के ये प्रमुख कवि थे । इनके जीवन्धररास
जम्बुस्वामीरास, कलावती रचित आदि प्रमुख रचनाएं हैं। 5. ब्रह्मजिनदास58 – ये सकल कीति के शिष्य थे। इन्होंने संस्कृत, हिन्दी में
लगभग 50 ग्रन्थ लिखे हैं। उदयपुर ग्रन्थ भण्डार में भी इनके ग्रन्थ प्राप्त होते हैं । जनरास काव्य के ये पुरस्कर्ता माने जाते हैं ।
इस तरह अनेक मट्टारक कवि इस मेवाड़ ममि में महाराणा कुम्भा के समय में हुए हैं, जिन्होंने इस भभाग को अपनी कृतियों से सजाया है। उनमे भट्टारक ज्ञान भूषण, भट्टारक श्रुतकीर्ति प्रादि प्रमुख हैं। श्रुतकीति ने अपनी रचनाएं माडवगढ़ के जेरहट नगर में लिखी थी । वि. सं. 1552-53 में इनका अच्छा प्रभाव था ।59 15वीं शताब्दी में लगभग 30 जैन रासो काव्य लिखे जाने की जानकारी मिलती है 160 पद्मनाभ 15 वीं सदी का प्रतिष्ठित हिन्दी कवि था। इन्होंने चित्तौड़ में 1543 में 'डूगरवावनी' लिखी है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org