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________________ कुम्भकालीन मेवाड़ में जैनधर्म महावीर प्रशस्ति 14 - मेवाड के राणाओं का इस प्रशस्ति में विशेष वर्णन है । गुहिल नरेश हम्मीर क्षेत्र, लक्ष, मोकल राजाओं के बाद इसमें महाराणा कुम्भा की विभिन्न विजयों का उल्लेख है । चित्तोड़गढ़ में स्थित महावीर जिनालय में यह प्रशस्ति सं. 1495 में लिखी गयी थी। इसमें यह भी उल्लेख है कि मोकल की प्राज्ञा के अनुसार महावीर मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया गया था । इस प्रशस्ति की रचना तपागच्छ के जैन मुनि चारित्ररत्नगणि द्वारा की गयी थी । सूत्रधार लक्ष के पुत्र नारद ने इसे उत्कीर्ण किया था । इस प्रशस्ति का विशेष अध्ययन डा० देव कोठारी ने प्रस्तुत किया है। 15 4. 5. 6. 7. 8. 9. रणकपुर शिलालेख 16यह शिलालेख महाराणा कुम्भा के राज्य काल आदि पर विशेष प्रकाश डालता है । इसे सं. 1495 में राणकपुर के चौमुखा जनमंदिर के स्तम्भ पर उत्कीर्ण किया गया है । इसमें मेवाड़ के नरेशों की वंशावली के उल्लेख के बाद महाराणा कुम्भा की विजय एवं उनके विद्यानुराग आदि का वर्णन है । 103 भवभावनाबालाबोध प्रशस्ति 17. श्री रत्नसिंहरि के शिष्य माणिक सुन्दरगरि द्वारा भवभावनाबोध सं० 501 कार्तिक सुदि 13 बुधवार को देलवाड़ा (मेवाड़) में लिखा गया था । रूपालीमूतलेख 18 - यह मूर्तिलेख रूपाहेली के जैनमंदिर की एक प्रतिमा के पृष्ठभाग पर उत्कीर्ण है । इस पर सं० 1505 आषाढ वदि 1 तिथि अंकित है । इस लेख में ओसवाल ( ऊकेश ) जाति तथा मलय गोत्र के शाह सालिग के परिवार का परिचय अंकित है | 19 प्रादिनाथ प्रतिमा लेख 20 - यह आदिनाथ की प्रतिमा नागदा ( एकलिंग जी) नामक प्राचीन स्थान पर बनायी गयी थी, जो अब उदयपुर सग्रहालय में सुरक्षित है ( संख्या 57 ) । इस प्रतिमा की चरण चौकी पर केवल चार पंक्ति का यह लेख है जो सूत्रधार धरणाक न खोदा था । इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा खरतरगच्छीय श्री मतिवद्ध नसूरि द्वारा की गयी थी। श्री रत्नचन्द्र अग्रवाल ने इस लेख को 15 वीं शताब्दी का माना है । इसमें कोई सम्वत् आदि नहीं है । श्रृंगारचौरी स्तम्भलेख 21 महाराणा कुम्भा के खजांची भण्डारी बेलक द्वारा निर्मित चित्तौड़गढ़ में जो शान्तिनाथ जिनालय है, उस मंदिर के स्तम्भ पर यह लेख अंकित है । सं० 1505 में इसे उत्कीर्ण कराया गया था। इस मन्दिर को शृंगारचौरी का मन्दिर भी कहते हैं । इसकी प्रतिष्ठा जिनसेनसूरि ने करायी थी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003669
Book TitleJain Dharm aur Jivan Mulya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1990
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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