SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेरापंथ का निर्माण व युवाकाल में प्रवेश ७७ कोमल और पारदर्शक थी कि जब आप पानी पीतीं तो वह गले से उतरता दिखाई देता। आपकी सुन्दरता अद्वितीय थी। आपके दर्शन कर पंडितों को लगता कि वे साक्षात् सरस्वती के दर्शन कर रहे हैं। संवत् १६२७ पौह सुदि ८ को आपको साध्वीप्रमुखा नियुक्त किया गया। आपने श्रीमद् जयाचार्य को अन्तिम समय में शुभ भावना बढ़ाने में बहुत सहयोग दिया। साध्वी-समाज आपके स्नेहपूर्ण व्यवहार से श्रद्धावनत रहता था। छाती पर गांठ के घाव से आप अस्वस्थ हो गईं। शारीरिक दौर्बल्य के कारण संवत् १६४२ पौह वदि ६ को जोधपुर में छ: प्रहर के सागारी व सवा प्रहर के चौविहार अनशन में आपका स्वर्गवास हो गया। ७. महासती जेठोंजो ____ आप चुरू के सेवारामजी नाहटा व उनकी पत्नी कानकुंवरजी की पुत्री थीं। आपका जन्म संवत् १६०१ में हुआ। लघु वय में आपका विवाह हुआ। कुछ वर्ष बाद पति-वियोग हो गया। संवत् १६१६ की आसाढ़ शुक्ला ३ को १६ वर्ष की आयु में श्रीमद् जयाचार्य ने आपको दीक्षा दी। आपका शरीर सुगठित व शौर्यसम्पन्न था। आपमें संयम-निष्ठा, संघीय भावना, गुरु-भक्ति, अनुशासनबद्धता, विनय, विवेक, कला-कुशलता, कार्यक्षमता, त्याग-विराग, सेवा-चर्या आदि अनेक गुण थे । संवत् १९५४ आसाढ़ वदि ५ को बीदासर में श्रीमद् डालगणि ने आपको साध्वीप्रमुखा के पद पर नियुक्त किया व उन्हें नाम न लेकर 'महासती' से सम्बोधित करने का संघ को निर्देश दिया। उपालम्भ सहन करने की उनमें अद्भुत शक्ति थी। श्रीमद् डालगणि जैसे तेजस्वी आचार्य का स्नेह व सम्मान इसी कारण वे पा सकीं। श्रीमद् कालगणि ने भी उन्हें बहमान दिया। साध्वी-समाज का नेतृत्व उन्हान अत्यन्त कुशलता से किया। उन्होंने उपवास से २२ दिन (१७ को छोड़कर) तक चौविहार लड़ीबद्ध तप किया। संवत् १९७३ से १९८१ तप आप राजलदेसर में स्थिरवासिनी रहीं। ___ संवत् १९८१ की कार्तिक शुक्ला ६ को प्रातः ११ बजे आपने शरीर छोड़ दिया। श्रीमद् जयाचार्य का दीक्षित साध्वी-समाज साध्वी जेतोंजी और झूमोंजी ने क्रमशः तीन बार व छः बार छः मासी तपस्या . की। साध्वी गुलाबोंजी व जेठोंजी साध्वीप्रमुखा बनीं। साध्वी भूरोंजी, गंगोंजी, जयकुंवरजी, किस्तूरोंजी, जडावोंजी ने छ: आचार्यो का शासनकाल देखा । साध्वी रायकुंवरजी व्याख्यानी, चर्चावादी, आगम अध्येता व साहसी अग्रगण्य रहीं। साध्वी जड़ावोंजी पुरानी रागों की अच्छी गायिका थीं। साध्वी गंगोंजी प्रमुख अग्रगण्या, प्रतिष्ठित चर्चावादी, निर्भीक, दूरदर्शी व महान् प्रेरक साध्वी थीं। इनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy