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________________ तेरापंथ का निर्माण व युवाकाल में प्रवेश ६१ उदयपुर, जयपुर, किशनगढ़ आदि में पावस प्रवास बिताकर स्थान-स्थान पर आपने अध्यात्म-भावना जागृत की । संवत् १६०३ में आपने नाथद्वारा में मुनिश्री हेमराजजी के साथ बारह संतों से चातुर्मास किया। एक युवाचार्य किसी मुनि के साथ चातुर्मास करे, यह विरल घटना है, पर आपकी निरभिमानता व विनय-भाव का भी यह उत्कृष्ट उदाहरण है। इस चातुर्मास में मुनिश्री से स्वामीजी के अनेक जीवन-संस्मरण सुनकर आपने लेखबद्ध किए जो आज 'भिक्षु दृष्टांत' नामक ग्रन्थ में उपलब्ध हैं। यह ग्रन्थ इतिहास, साहित्य, तत्त्वज्ञान आदि कई दृष्टियों से अत्यंत महत्त्वपूर्ण व बेजोड़ है। आपने अपने शिक्षा-गुरु की सेवा कर, उनके उपकारों से यत्किचित उऋणता प्राप्त की। उनके अन्त समय में संवत १९०४ में सिरीयारी में पास रहकर, आपने उनकी आराधना व प्रत्यालोचना में अच्छी सहायता की व चित्त-समाधि उपजाई । संवत् १६०६-१६०७ (मुनि स्वरूपचन्दजी के साथ) में आपने बीकानेर चातुर्मासिक प्रवास बिताए । सं० १९०७ का चातुर्मास पहले बीदासर घोषित था, पर अधिक उपकार की संभावना के कारण बाद में परिवर्तन हो गया। इसकी आपको सूचना आसाढ़ में मिली। रेगिस्तान की तपती रेत, भयंकर गर्मी, लगभग १३० किलोमीटर की दूरी, मार्ग में सुविधाजनक स्थान नहीं, पर यह सब होते हुए भी आपने सारे कष्ट सहकर गुरु-आज्ञा को शिरोधार्य किया। बीदासर के लोगों ने बहाना बनाकर न जाने का निवेदन किया तो आपने कहा, "बहाना तो नौकर (गुलाम) बनाता है, हम तो कर्तव्यभाव से सहर्ष जाएंगे।" उस चातुर्मास में मदनचन्दजी राखेचा आदि कई उच्च राज्याधिकारी प्रभावित हुए। सं० १६०८ में आपने स्वरूपचन्दजी स्वामी आदि १२ मुनिजनों सहित बीदासर चातुर्मास किया। वहां से लाडनूं पधारकर सं० १६०८ की मगसिर वदि १२ को मुनि मघवा को दीक्षा प्रदान की। स्थान की दूरी, यातायात के साधनों का अभाव व संचार-व्यवस्था की कमी के कारण, वहां माघ शुक्ला ८ को मेवाड़ से पत्र आया, जिसमें लिखा था कि आचार्यश्री रायचन्दजी का माघ वदि १३ को छोटी रावलियों में स्वर्गवास हो गया। यह सूचना मानो एक युग की समाप्ति व नवीन युग के प्रारम्भ की सूचना थी। आचार्य-काल ___ संवत् १९०८ की माघ शुक्ला पूर्णिमा को आप पदासीन हुए। लम्बे अरसे से आपके मन में तत्कालीन परिस्थितियों व विचारों के परिवेश में अनेक व्यवस्थाओं में चिंतनपूर्वक परिवर्तन करने की योजनाएं बनी हुई थीं, जिनकी क्रियान्विति का सही समय आ चुका था। उन योजनाओं में तेरापंथ के निश्चित आकार, प्रकार व निर्माण की सम्भावनाओं के साथ, विकास के विविध आयामों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003668
Book TitleHe Prabho Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1989
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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