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तेरापंथ का निर्माण व युवाकाल में प्रवेश ५६ चर्चा व आगमों के सूक्ष्म रहस्य -सभी विषयों में पारंगतता प्राप्त की। आपकी मेधा व स्फुरणा इतनी प्रबल थी कि ग्यारह वर्ष की अवस्था में ही, संवत् १८७१ में, आपने 'संत गुणमाला' गीतिका की रचना की। संवत् १८८१ में मुनिश्री हेमराजजी ने जयपुर चातुर्मास किया । आगमों की टीकाएं संस्कृत में होने के कारण आपकी इच्छा संस्कृत का अध्ययन करने की हुई, पर संघ में ऐसा सुयोग था नहीं । ब्राह्मण जैन साधुओं को निःशुल्क संस्कृत शिक्षा देते नहीं थे, अतः यह कार्य दुरूह था । पर 'जहां चाह वहां राह' मिल ही जाती है । जयपुर में एक श्रावक का पुत्र संस्कृत व्याकरण पढ़ता था। वह जो दिन में पढ़ता, उसे रात में आपको सुना देता व आप कंठस्थ कर लेते । इस तरह आपने सारस्वत का पूर्वार्द्ध व सिद्धान्त चन्द्रिका का उतरार्द्ध कंठस्थ किया व शब्दसिद्धि की साधनिका लेखबद्ध की। इस तरह बारह वर्षों में आपने अगाध आगमज्ञान, साहित्य-सृजन की कला व संस्कृत का अध्ययन किया।
अग्रणी के रूप में
संवत् १८८१ के पौष शुक्ला ३ को पाली में श्रीमद् ऋषिराय ने आपको अग्रणी बना दिया व प्रथम चातुर्मास उदयपुर करवाया। वहां महाराणा भीमसिंहजी व युवराज जवानसिंहजी आपसे विशेष प्रभावित हुए। महाराणा आपके बिराजने के स्थान के सामने घोड़ा रोककर आपकी वंदना करते । उस चातुर्मास के पूर्व व पश्चात् आपने नाथद्वारा में नन्दरामजी यति के पुस्तक भण्डार से भगवती, अनुयोगद्वार, उत्तराध्ययन सूत्रों की संस्कृत टीकाएं लीं। केशरजी भण्डारी से सूत्रकृतांग दीपिका ली। कांकरोली पुस्तक भण्डार से भी कई संस्कृतप्राकृत ग्रन्थ प्राप्त किए । मेवाड़ में आप जहां पधारे, वहीं सफलता ने आपके चरण चूमे । संवत् १८८३ में, शेषकाल में, आप श्रीमद् ऋषिराय के साथ मालवा पधारे. और खाचरोद, रतलाम व उज्जैन में अन्य सम्प्रदाय के मुनियों से शास्त्रार्थ कर उन्हें समाधान दिया। संवत् १८८५ में आपने जयपुर चातुर्मास किया, जहां मालीरामजी लूणिया, गेरुजी प्रभृति ५२ व्यक्तियों ने गुरु-धारणा ली। चातुर्मास के बाद किशनगढ़ में भी अच्छा उपकार हुआ । संवत् १८८७ में स्थली प्रदेश में तेरापंथ के प्रथम चातुर्मास की कड़ी में आपने चुरू चातुर्मास किया, चन्द्रभाणजी तिलोकचन्दजी के कई श्रावकों को समझाकर उनका भ्रम दूर किया व सरदार सती को दीक्षा की प्रेरणा दी । संवत् १८८८ में आपने बीकानेर में चातुर्मास किया। उस क्षेत्र में भयंकर विरोध के उपरान्त तेरापंथ के बारे में अनेक प्रकार की भ्रान्तिओं का निराकरण किया। सैकड़ों लोगों को प्रभावित किया। बीकानेर चातुर्मास में हरियाणा के दो भाई मोमनचन्द व गुलहजारी ने दर्शन कर दिल्ली पधारने का निवेदन किया तब आपने कोदरजी स्वामी को मेवाड़ भेजकर श्रीमद्
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