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मी आचार्यों तथा कतिपय प्रभावशाली मुनियों का संक्षिप्त जीवन-परिचय एवं उनके ऐतिहासिक कार्यों की स्वल्प-सी अवगति प्रदान की है। सहज, सरल एवं प्रवाहमयी भाषा तथा सुशृंखलित वाक्य-विन्यास प्रतिपाद्य विषय को आद्योपान्त सुविहित बनाये रखता है । यह इस पुस्तक की अपनी विशेषता है, एक न्यायाधीश की मानसिकता से छनकर आये हुए तर्कपूर्ण निष्कर्ष ही जिज्ञासुओं के सम्मुख और अधिक गहनता से इतिहास के अवगाहन की प्रेरणा प्रस्तुत करते हैं । संक्षिप्त रुचि पाठकों के लिए इतिहास की यह पुस्तक बहुत उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसी आशा करता हूं।
'६ अक्तूबर, १९८५ तेरापंथी सभाभवन, बालोतरा (राजस्थान)
– मुनि बुद्धमल्ल (निकाय प्रमुख)
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