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५२ हे प्रभो ! तेरापंथ अगवानी करते ।
संवत् १९५४ में श्रीमद् माणक गणि का कार्तिक में अकस्मात देहावसान हो गया। वे अपने उत्तराधिकारी का मनोनयन नहीं कर सके । संघ के सम्मुख अनायास कसौटी की एक घड़ी आ गई। मुनिश्री का चातुर्मास उस वर्ष उदयपुर था। आप पौष वदि ३ को लाडनूं पहुंचे, जहां लगभग सारा संघ आपकी प्रतीक्षा कर रहा था। सारे संघ ने आप में अट विश्वास प्रकट कर आपसे संघ का आचार्य घोषित करने का भाव भरा निवेदन किया। आप पर एक बहुत बड़ी जिम्मेवारी आ गई और आपने अन्य सारी बातों को गौण कर संघ, संगठन व अनुशासन के हित की दृष्टि से मुनिश्री डालचंदजी का नाम सप्तमाचार्य के लिए घोषित किया । सारे संघ में हर्ष छा गया। युग-युग तक इतिहास इस बात का साक्षी रहेगा कि आपने कितना सही व समुचित चुनाव किया। एकमात्र यही घटना तेरापंथ के इतिहास में आपको अजर-अमर बना देने के लिए पर्याप्त है। संवत् १६५८ के द्वितीय श्रावण वदि ३ को छापर चातुर्मास में अनशन कर मुनिश्री ने समाधिपूर्वक स्वर्ग प्रस्थान कर दिया। संघ और संघपति के प्रति अविचल भाव से समर्पित व्यक्तित्व संघ के गौरव में अभिवृद्धि करके सदा के लिए शान्त हो गया। युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी ने जयाचार्य निर्वाण शताब्दी पर आपको 'शासन स्तम्भ' घोषित किया।
४. पंचमाचार्य मघराजजी का वर्णन आगे के पृष्ठों में दिया जायेगा।
५. महासती सरदारोंजी (साध्वीप्रमुखा)
सरदार सती का जन्म चुरू के धनाढ्य सेठ जेतरूपजी कोठारी व उनकी पत्नी चंदनादेवी के घर संवत १८६५ के आसोज में हुआ। उनका विवाह मात्र दस वर्ष की अवस्था में फलौदी के सम्पन्न सेठ सुल्तानमलजी ढड्ढा के पुत्र जोरावरमलजी के साथ हुआ पर पांच माह बाद ही आपको पति-वियोग हो गया और वे प्रारम्भ से बाल-ब्रह्मचारिणी रहीं। सरदार सती के पीहर में तेरापंथ से बहिर्भूत चन्द्रभाणजी तिलोकजी की मान्यता थी, पर संवत् १८८६ में श्रीमद् ऋषिराय के पदार्पण व संवत् १८८७ में मुनि जीतमलजी के चुरू चातुर्मास में वे तेरापंथ की ओर आकृष्ट हए व सरदार सती ने भी गुरु धारणा की। संवत् १८७८ से ही सरदार सती ने उत्कृष्ट तप व त्याग से भावित जीवन बिताना प्रारम्भ किया, आपने ससुराल वालों से दीक्षा की अनुमति चाही पर वे इनकार हो गए। आपको नानाविध कष्ट दिए गए, पर आपने भी इतने दृढ़ संकल्प का परिचय दिया कि अन्ततः वे सहमत हो गए । वर्षों तक दिये गए उन कष्टों की कहानी स्वयं में रोमांचित करने वाली है। संवत् १८६७ मगसिर वनि ४ को आपकी दीक्षा
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